एशिया में चीन के उभार और अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों के कारण बनी अनिश्चितता को देखते हुए भारत-जापान का तेजी से नज़दीक आना एक अनिवार्यता है। यह निकटता न सिर्फ भारत की आर्थिक तरक्की की रफ्तार बढ़ाएगी बल्कि जापान और भारत दोनों के लिए रणनीतिक सुरक्षा और चौकसी का आधार भी प्रदान करेगी। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे अहमदाबाद से मुंबई तक जिस एक लाख करोड़ रुपए की बुलेट ट्रेन परियोजना का शिलान्यास करने आए हुए हैं वह भारत की यातायात व्यवस्था को जापान-चीन की दिशा में बदलने का सपना है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे भारत के राष्ट्रवाद से जोड़कर 2022 यानी आज़ादी की 75वीं सालगिरह पर पूरा करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, पिछले कुछ दिनों से बढ़ते ट्रेन हादसों और बुलेट ट्रेन परियोजना पर आने वाले भारी खर्च को देखते हुए शिवसेना जैसी सहयोगी पार्टियों ने इसे अमीरों और पूंजीपतियों के हित वाली योजना बताया है। लेकिन, मामला सिर्फ बुलेट ट्रेन का नहीं भारत और जापान की आर्थिक तथा रणनीतिक साझेदारी का है। जब चीन वन बेल्ट वन रोड की परियोजना को तेजी से मूर्त रूप दे रहा हो और डोकलाम में लंबे तनाव के बाद लौटी शांति के स्थायी होने की कोई गारंटी न हो तब भारत को एशिया में अपना नया दोस्त ढूंढ़ना जरूरी था। चीन ने अपने और अमेरिका के बीच अंतर को काफी कम कर दिया है और एशिया में जापान को पीछे करके पहले नंबर की आर्थिक ताकत बन गया है। आज अगर भारत और जापान का रक्षा बजट क्रमशः 56 और 46 अरब डॉलर है तो चीनी रक्षा बजट 216 अरब डॉलर का है। यह स्थिति चीन को ऐसी ताकत देती है कि वह कभी भारत को दबाता है तो कभी जापान को। साथ में अमेरिका से भी यह सौदेबाजी कर रहा है कि वह एशिया में हस्तक्षेप करके जो शक्ति संतुलन बनाता था उसे घटाए और चीन को एशिया का चौधरी बनकर अपने साथ वैश्विक सत्ता के शीर्ष पर स्थापित होने दे। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी-आबे के बहाने भारत-जापान की यह मैत्री स्वागत योग्य है। अच्छा होता मोदी इस पूरे आयोजन को गुजरात तक सीमित रखने की बजाय अखिल भारतीय स्वरूप देते। तब कांग्रेस पार्टी को यह कहने का मौका न मिलता कि उनकी निगाह नवंबर-दिसंबर में होने वाले गुजरात चुनाव पर भी है।
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