जब तक कि वर्जित न हो, न्यायालय सभी सिविल वादों का विचारण करेंगे – न्यायालयों को (इसमें अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए) उन वादों के सिवाय, जिनका उनके द्वारा संज्ञान अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से वर्जित है, सिविल प्रकृति के सभी वादों के विचारण की अधिकारिता होगी।
स्पष्टीकरण 1 – वह वाद, जिसमें संपत्ति-संबंधी या पद-संबंधी अधिकार प्रतिपादित है, इस बात के होते हुए भी कि ऐसा अधिकार धार्मिक कृत्यों या कर्मों संबंधी प्रश्नों के विनिश्चय पर पूर्ण रूप से अवलंबित है, सिविल प्रकृति का वाद है।
स्पष्टीकरण 2 – इस धारा के प्रयोजनों के लिए, यह बात तात्विक नहीं है कि स्पष्टीकरण 1 में निर्दिष्ट पद के लिए कोई फीस है या नहीं अथवा ऐसा पद किसी विशिष्ट स्थान से जुड़ा है या नहीं।
वाद का रोक दिया जाना :- कोई न्यायालय ऐसे किसी भी वाद के विचारण में जिसमें विवाद्य-विषय उसी के अधीन मुकदमा करने वाले किन्हीं पक्षकारों के बीच के या ऐसे पक्षकारों के बीच के, जिनसे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन वे या उनमें से काई दावा करते हैं, कि पूर्वतन संस्थित वाद में भी प्रत्यक्षत: और सारत: विवाद्य है, आगे कार्यवाही नहीं करेगा जहां ऐसा वाद उसी न्यायालय में या भारत में के किसी अन्य ऐसे न्यायालय में, जो दावा किया गया अनुतोष देने की अधिकारिता रखता है या भारत की सीमाओं के परे वाले किसी ऐसे न्यायालय में, जो केंद्रीय सरकार द्वारा स्थापित किया गया है या चालू रखा गया है और, वैसी ही अधिकारिता रखता है, या उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है।
स्पष्टीकरण – विदेशी न्यायालय में किसी वाद का लंबित होना उसी वाद-हेतुक पर आधारित किसी वाद का विचारण करने से भारत में के न्यायालयों को प्रवारित नहीं करता ।
पूर्व-न्याय – काई भी न्यायालय किसी ऐसे वाद या विवाद्ययक का विचारण नहीं करेगा जिसमें प्रत्यक्ष: और सारत: विवाद्य-विषय उसी हक के अधीन वे या उनमें से कोई दावा करते हैं, किसी पूर्ववर्ती वाद में भी ऐसे न्यायालय में प्रत्यक्षत: और सारत: विवाद्य रहा है, जो ऐसे पश्चात्वर्ती वाद का या उस वाद का, जिसमें ऐसा विवाद्यक वाद में उठाया गया है, विचारण करने के लिए सक्षम था और ऐसे न्यायालय द्वारा सुना जा चुका है और अंतिम रूप से विनिश्चित किया जा चुका है।
स्पष्टीकरण 1 – ‘पूर्ववर्ती वाद’ पद ऐसे वाद का द्योतक है जो प्रश्नगत वाद के पूर्व ही विनिश्चित किया जा चुका है चाहे वह उससे पूर्व संस्थित किया गया हो या नहीं।
स्पष्टीकरण 2 – इस धारा के प्रयोजनों के लिए, न्यायालय की सक्षमता का अवधारण ऐसे न्यायालय के विनिश्चय के अपील करने के अधिकार विषयक किन्हीं उपबंधों का विचारण किए बिना जाएगा।
स्पष्टीकरण 3 – ऊपर निर्देशित विषय का पूर्ववर्ती वाद में एक पक्षकार द्वारा अभिकथन और दूसरे द्वारा अभिव्यक्त का विवक्षित रूप से प्रत्याख्यान या स्वीकृति आवश्यक है।
स्पष्टीकरण 4 – ऐसे किसी भी विषय के बारे में, जो ऐसे पूर्ववर्ती वाद में प्रतिरक्षा या आक्रमण का आधार बनाया जा सकता था और बानाया जाना चाहिए था, यह समझा जाएगा कि वह से वाद में प्रत्यक्षत: और सारत: विवाद्य रहा है।
स्पष्टीकरण 5 – वाद-पत्र में दावा किया गया कोई अनुतोष, जो डिक्री द्वारा अभिव्यक्त रूप से नहीं दिया गया है, इस धारा के प्रयोजनों के लिए नामंजूर कर दिया गया समझाा जाएगा।
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