पहले प्याज के दाम बढ़ने से हाहाकार मचा था और अब नासिक के आठ-नौ प्रमुख व्यापारियों पर आयकर के छापों से प्याज के थोक मूल्य 1400 रुपए क्विंटल से 900 रुपए होने पर किसानों में नाराजगी है। 35 प्रतिशत की यह गिरावट बैंक ब्याज दरों में कटौती का माहौल बना रही सरकार और बाहर भेजने के लिए लालायित निर्यातकों को फायदा देने वाली है तो किसानों और घरेलू व्यापारियों के लिए घाटा। नोटबंदी से परेशान किसान अच्छी कीमत मिलने का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे और वह कीमत नहीं मिलेगी तो वे या तो प्याज रोकेंगे या सड़कों पर फेंकेंगे। इस खींचतान में प्याज की नई राजनीति शुरू होने की संभावना है, जिसकी एक झलक फरवरी माह में नासिक के निकाय चुनावों में एनसीपी और शिवसेना के साथ भाजपा की खींचतान में दिखी। प्याज की इस राजनीति में एक तरफ तो इसका अंतरराष्ट्रीय बाजार और निर्यातक हैं तो दूसरी तरफ घरेलू उत्पादक और बाजार के बीच तमाम तरह के बिचौलिए। अगस्त के महीने में जब प्याज के खुदरा दाम तीस से पचास रुपए किलो तक पहुंच गए तो कृषि मंत्रालय को चिंता हुई और उसने अपने अधिकारियों को प्याज के भंडार और आवक के बारे में पता करने का आदेश दिया। उसी के साथ आयकर के छापे के बाद जो नतीजा सामने आया है उससे निर्यातकों को लाभ होने की संभावना है। भारतीय बाजार में प्याज के दाम बढ़ने के साथ निर्यातकों को पाकिस्तान, चीन और मिस्र के निर्यातकों से मध्य एशिया और श्रीलंका को आपूर्ति में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करनी पड़ रहा था। इधर सरकार के सामने थोक मूल्य सूचकांक में मुद्रास्फीति की चुनौती दरपेश थी, क्योंकि वह पिछले महीने के 1.9 प्रतिशत से बढ़कर 3.24 प्रतिशत तक आ गई है। इसमें पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी से चार गुना योगदान प्याज के दाम का बढ़ना बताया जा रहा है। इस साल गुजरात में प्याज का उत्पादन कम है तो कर्नाटक से भी ज्यादा आपूर्ति की उम्मीद नहीं है। दारोमदार मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र पर है लेकिन, यहां के किसान कीमत से संतुष्ट नहीं हैं, इसलिए आपूर्ति रोक सकते हैं। प्याज के उत्पादन, विपणन और इस्तेमाल की यह परत दर परत पहेली तभी सुलझ सकती है जब सरकार का हस्तक्षेप सभी के हितों को ध्यान में रखते हुए बाजार की विकृतियों को सुधारने के लिए हो, न कि बाजार में विकृति पैदा करने के लिए।
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