यदि आप इस ब्‍लोग में हैं तब तो आप हिंदी टाइपिंग और डिक्‍टेशन से परिचित ही होंगे। यह ब्‍लोग उन सभी अभ्यार्थियों की सहायता के लिए प्रारंभ किया गया है जो हिंदी टाइपिंग के क्षेत्र में अपना भविष्‍य बनाना चाहते हैं। आप अपनी हिंदी टाइपिंग को अधिक शटीक बनाने के‍ लिए हिंंदी के नोट्स और डिक्‍टेशन की सहायता ले सकते हैं।
If you are in this blog then you will be familiar with Hindi typing and dictation. This blog has been started to help all those candidates who want to make their future in the field of Hindi typing. You can get help from Hindi notes and dictation to make your Hindi typing more effective.

Wednesday, 7 March 2018

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (प्रस्‍तावना)


संक्षिप्‍त नाम प्रारंभ और विस्‍तार :- इस अधिनियम का संक्षिप्‍त नाम सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 है। यह सन् 1909 की जनवारी के प्रथम दिन को प्रवृत्‍त होगा। इसका विस्‍तार जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य, नागालैण्‍ड राज्‍य और जनजाति क्षेत्रों के सिवाय सम्‍पूर्ण भारत पर है। परंतु संबंधित राज्‍य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस संहिता के उपबंधों का या उनमें से किसी का विस्‍तार, यथास्थिति, सम्‍पूर्ण नागालैण्‍ड राज्‍य या ऐसे जनजाति क्षेत्रों या उनके किसी भाग पर ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक या पारिणामिक उपान्‍तरों सहित कर सकेगी जो अधिसूचना में विनिर्दिष्‍ट किए जाए। 

स्‍पष्‍टीकरण – इस खंड में ‘जनजाति क्षेत्र’ से व‍े राज्‍यक्षेत्र अभिप्रेत है जो 21 जनवरी, 1972 के ठीक पहले संविधान की छठी अनुसूची के पैरा 20 में यथानिर्दिष्‍ट असम के जनजाति क्षेत्र में सम्मिलित थे। 

पिरभाषाएं – इस अधिनियम में, जब तक कि विषय या संदर्भ में कोई बात विरुद्ध न हो – 

‘संहिता’ के अंतर्गत नियम आते हैं 

‘डिक्री’ से ऐसे न्‍यायनिर्णयन की प्ररूपिक अभिव्‍यक्ति अभिप्रेत है जो, जहां तक कि वह उसे अभिव्‍यक्‍त करने वाले न्‍यायलय से संबंधित है, वाद में के सभी या किन्‍हीं विवादग्रस्‍त विषयों के संबंध में पक्षकारों के अधिकारों का निश्‍चायक रूप से अवधारण करता है औश्र वह या तो प्रारम्भिक या अंतिम हो सकेगी। यह समझा जाएगा कि इसके अंतर्गत वादपत्र का नामंजूर किया जाना और धारा 144 के भीतर के किसी प्रश्‍न का अवधारण आता है । 

‘डिक्रीदार’ से कोई ऐसा व्‍यक्ति अभिप्रेत है जिसके पक्ष में कोई डिक्री पारित की है या कोई निष्‍पादन-योग्‍य आदेश किया गया है। 

‘जिला’ से आरम्भिक अधिकारिता वाले प्रधान सिविल न्‍यायालय की (जिसे इसमें इसके पश्‍चात् ‘जिला न्‍यायालय’ कहा गया है) अधिकारिता की स्‍थानीय सीमांए अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत उच्‍च न्‍यायालय की मामूली आरम्भिक सिविल अधिकारिता की स्‍थानीय सीमाएं आती हैं। 

‘सरकारी प्‍लीडर’ के अंतर्गत ऐसा कोई अधिकारी आता है जो सरकारी प्‍लीडर पर इस संहिता द्वारा अभिव्‍यक्‍त रूप से अधिरोपित कृत्‍यों का या उनमें से किन्‍हीं का पालन करने के लिए राज्‍य सरकार द्वारा नियुक्‍त किया गया है और ऐसा कोई प्‍लीडर भी आता है जो सरकार प्‍लीडर के निदेशों के अधीन कार्य करता है। 

‘निर्णय’ से न्‍यायाधीश द्वारा डिक्री या आदेश के आधारों का कथन अभिप्रेत है 

‘निर्णीत ऋणी’ से वह व्‍यक्ति अभिप्रेत है जिसके विरुद्ध कोई डिक्री पारित की गई है या निष्‍पादन-योग्‍य कोई आदेश किया गया है। 

‘विधिक प्रतिनिधि’ से वह व्‍यक्ति अभिप्रत है जो मृत व्‍यक्ति की सम्‍पदा का विधि की दृष्टि से प्रतिनिधित्‍व करता है और उसके अंतर्गत कोई ऐसा व्‍यक्ति आता है जो मृतक की सम्‍पदा में दखलंदाजी करता है और जहां कोई पक्षकार प्रतिनिधि रूप में वाद लाता है या जहां किसी पक्षकार पर प्रतिनिधि रूप में वाद लाया जाता है वहा वह व्‍यक्ति इसके अंतर्गत आता है जिसे वह सम्‍पदा उस पक्षकार के मरने पर न्‍यागत होती है जो इस प्रकार वाद लाया है या जिस पर इस प्रकार वाद लाया गया है।


(Word Count - 462)

No comments:

Post a Comment