कांग्रेस उपाध्यक्ष और जल्दी ही अध्यक्ष बनने की तैयारी में लगे राहुल गांधी ने भगवान कृष्ण की नगरी कही जाने वाली द्वारका से गुजरात विधानसभा चुनाव का प्रचार करने का फैसला करके हिंदुओं का दिल छूने की कोशिश की है लेकिन, यह संदेश भाजपा के हिंदुत्व के जादू को कितना कम कर पाएगा कहना कठिन है। गुजरात में लगातार तीन कार्यकाल पूरा कर चुकी और उसी मॉडल का प्रचार करके दिल्ली तक पहुंची भाजपा अब चौथे कार्यकाल की तैयारी कर रही है तब कांग्रेस को इस मॉडल की तमाम कमियां दिख रही हैं। राहुल उसी पर ध्यान आकर्षित करके 2019 के लिए अपनी नई राजनीति की बिसात बिछाना चाहते हैं। वे यह कहकर अपने को सत्य और न्याय के पक्ष में खड़ा दिखाना चाहते हैं कि महाभारत के समय कौरवों को हराने के लिए पांडव कृष्ण का आशीर्वाद लेने गए थे और वे भी वैसा ही कर रहे हैं। लेकिन, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता ही कृष्ण होती है और क्या वह उनके साथ आने को तैयार है? कांग्रेस ने पिछले माह राज्यसभा चुनाव में देख लिया है कि उसके सामने भाजपा की केंद्रीय शक्ति और राज्य में निर्मित विविध छवियों के व्यूह को भेद पाना कितना कठिन है। अगर उस चुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता और सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल चुनाव जीते हैं तो वह चुनाव आयोग की स्वायत्तता और तकनीकी बिंदुओं के आधार पर न कि कांग्रेस की सांगठनिक क्षमता के चलते। हालांकि, पटेल की जीत ने कांग्रेस का हौंसला बनाए रखा है और उसे किसानों, युवाओं के असंतोष और पाटीदार बिरादरी की नाराजगी को अपने पक्ष में करने का अवसर दिया है। वह आकर्षण 182 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत दिला पाएगा, यह कह पाना कठिन है। भाजपा की तुलना में कांग्रेस का विभाजन कहीं ज्यादा है। अगर ऐसा न होता तो शंकर सिंह बाघेला के पार्टी छोड़ने के बावजूद राज्य अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी के समांतर चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की नौबत न आती। उधर भाजपा गुजरात मॉडल की कमियों को ढंकने के लिए उसमें नए-नए चांद-तारे जोड़ रही है। बुलेट ट्रेन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन के मौके पर सरदार सरोवर का उद्घाटन करके समृद्धि का मायावी स्वप्न दिखाया है। देखना है द्वारका से चुनाव शुरू करने वाले राहुल इस युद्ध में अर्जुन साबित होते हैं या अभिमन्यु।
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