चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासम्मेलन में स्वीकृत हुए वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) के प्रस्ताव के जवाब में जापान की पहल पर भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की युति से दुनिया के शक्ति संतुलन का नया मानचित्र बनने की संभावना बढ़ गई है। जापानी विदेश मंत्री तारो कोनो के बयान से लग रहा है कि इसका स्वरूप चीन की योजना के विकल्प के तौर पर होगा और इसमें दुनिया के अन्य देशों को जोड़ा जाएगा। चीन की विस्तारवादी नीति से भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे अहम देश तो चिंतित हैं ही एशिया और अफ्रीका के अन्य देश भी बेचैन हैं पर वे जाएं तो जाएं कहां। पहले से चर्चा में रही इस योजना को जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे दोबारा सत्ता में आने के बाद ठोस रूप देने को उत्सुक हैं। इस पर तारो कानो ने ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री जूली बिशप और अमेरिकी विदेश मंत्री रैक्स टिलरसन से अगस्त में ही बात की थी। इस बीच भारत के दौरे पर आए टिलरसन ने दक्षिण एशिया में सड़क और बंदरगाह बनाने पर जोर दिया ताकि एशिया और प्रशांत क्षेत्र की व्यापारिक और सामरिक नीति को नया आयाम दिया जा सके। शिंजो आबे और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 6 नवंबर को होने वाली मुलाकात भी इस दिशा में खास हो सकती है। इस योजना के माध्यम से अमेरिका भारत की भूमिका को बढ़ाने को उत्सुक है। अमेरिका चाहता है उसके ऐसे रिश्ते बनें जो आने वाले सौ वर्षों तक कारगर हों। रिश्तों के इसी खाके में अफगानिस्तान में भारत की भूमिका बढ़ाने की भी बात है, जो अपने में सबसे आरंभिक पहल कही जा सकती है। इस दीर्घकालिक सामरिक योजना को अगर व्यापारिक योजना के तहत क्रियान्वित किया जाएगा तो दुनिया के दूसरे देश भी आकर्षित होंगे और विश्व समुदाय के नियमों को लागू करने में सुविधा होगी। यह सही है कि अमेरिका दुनिया के नियमों को अपने ढंग से हांकता है लेकिन, वह दुनिया को पटरी पर रखने की जिम्मेदारी भी उठाता है। जबकि चीन अपनी बढ़ती सामरिक और आर्थिक शक्ति के कारण नियमों को ताक पर रखकर अपनी दुनिया बनाना चाहता है। इसी कारण उसने साठ देशों को जोड़ने वाली ओबीओआर योजना तैयार की है और भारत ने सम्प्रभुता का सवाल उठाकर उसमें शामिल होने से मना कर रखा है। देखना है कि जापान की पहल वाली इस नई योजना का स्वरूप क्या होता है और भारत उसमें किस प्रकार शामिल होता है।
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