अन्य प्रतिवादों पर कोई प्रभाव न होना – इस अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी भी बात का यह अर्थ न लगाया जाएगा कि उसमें यह विवक्षित है कि कोई अन्य ऐसा प्रतिवाद जो न्यायालय अवमान की किन्हीं कार्यवाहियों में विधिमान्य प्रतिवाद होगा, केवल इस अधिनियम के उपबंधों के कारण ही उपलभ्य नहीं रहा है ।
अधिनियम द्वारा, अवमान की परिधि का बढ़ाना, विवक्षित न होना – इस अधिनिमय के अंतर्विष्ट किसी भी बात का यह अर्थ न लगाया जाएगा कि उसमें यह विवक्षित है कि कोई ऐसी अवज्ञा या ऐसा भंग, प्रकाशन या अन्य कार्य जो इस अधिनिमय से अन्यथा न्यायालय अवमान के रूप में दण्डनीय न होता ऐसा दण्डनीय है ।
अधीनस्थ न्यायालयों के अवमान के लिए दण्डित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति – प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों के अवमान के बारे में वह अधिकारिता, शक्तियाँ है और प्राधिकार प्राप्त होंगे और वह उसी प्रक्रिया और पद्धति के अनुसार उनका प्रयोग करेगा जैसे उसे स्वयं अपने अवमान के बारे में प्राप्त है और जिसके अनुसार वह उनका प्रयोग करता है ।
परंतु कोई भी उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय के बारे में किए गए अभिकथित अवमान का संज्ञान नहीं करेगा जबकि वह अवमान भारतीय दंड संहिता 1860 का 45 के अधीन दण्डनीय अपराध है ।
अधिकारिता के बाहर किए गए अपराधों या पाए गए अपराधियों का विचारण करने की उच्च न्यायालय कि शक्ति – उच्च न्यायालय को अपने या अपने अधीनस्थ किसी न्यायालय के अवमान की जाचं करने और उसका विचारण करने की अधिकारिता होगी चाहे ऐसे अवमान का उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर किया जाना अभिकथित हो या बाहर और चाहे वह व्यक्ति जो अवमान का दोषी अभिकथित है ऐसी सीमाओं के भीतर हो या बाहर ।
न्यायालय अवमान के लिए दण्ड – इस अधिनियम या किसी अन्य विधि में अभिव्यक्त रूप से जैसा अन्यथा उपबंधित है इसके सिवाय न्यायालय अवमान सादे करावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो 2000 रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकेगा । परंतु न्यायालय को समाधानप्रद रूप से माफी मांगे जाने पर अभियुक्त को उन्मोचित किया जा सकेगा या अधिनिर्णीत दण्ड का परिहार किया जा सकेगा ।
तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी कोई न्यायालय चाहे अपने या अपने अधीनस्थ किसी न्यायालय के अवमान के बारे में उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट दण्ड से अधिक दण्ड अधिरोपित नहीं करेगा । इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, जब कोई व्यक्ति सिविल अवमान का दोषी पाया जाता है तब यदि न्यायालय यह समझता है कि जुर्माने से न्याय का उद्देश्य पूरा नहीं होगा और कारावास का दण्ड आवश्यक है, तो वह उसे सादे कारावास से दण्डादिष्ट करने के बजाय यह निर्देश देगा कि वह छह मास से अनाधिक की इतीन अवधि के लिए, जितनी न्यायालय ठीक समझे, सिविल कारागार में निरुद्ध रखा जाए ।
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