भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर में बाहरी लोगों के जमीन खरीदने और बसने को रोकने वाले संविधान के अनुच्छेद 35-ए को बरकरार रखने के बारे में आश्वासन देकर वहां के गरमाते राजनीतिक माहौल को ठंडा करने का जो प्रयास किया है वह सराहनीय है। लेकिन, सरकार को इस आश्वासन को पुख्ता करने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के सुझाव के मुताबिक अदालत में जवाबी हलफनामा देकर पूरा पक्ष रख देना चाहिए। सरकार के इस प्रयास से एक नए उभरते मुद्दे की हवा निकालने में सुविधा होगी। दरअसल, यह सरकार उस पार्टी की है जिसके नेता लगातार कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने की मांग करते रहे हैं । ऐसे में जब राजनाथ सिंह कहते हैं कि वे कश्मीर में खुले दिल से आए हैं तो उनकी बात पर दूसरे पक्ष को पूरा भरोसा नहीं होता। यहां तक कि पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के मन में भी संदेह होता है और वे सफाई लेने दिल्ली तक दौड़ी चली आती हैं। लेकिन भाजपा नेताओं ने न सिर्फ अलगाववादियों के करीब समझी जाने वाली पीडीपी जैसी पार्टी के साथ सरकार बनाई है बल्कि आतंकवाद के उग्र होने के बावजूद महबूबा मुफ्ती की सरकार को कायम रख कर अपनी निरंतरता का परिचय दिया है। यह एक जिम्मेदारीपूर्ण भूमिका है जिसे भाजपा को और आगे बढ़कर निभाना होगा। संयोग से राजनाथ सिंह का कश्मीर का दौरा ऐसे समय हो रहा है जब अंतरराष्ट्रीय स्थितियां भारत के अनुकूल हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान के आतंकी संरक्षण पर निगाह टेढ़ी की है और उसके दोस्त चीन ने भी ब्रिक्स सम्मेलन में कड़ाई दिखाई है। इस बीच घाटी में आतंकवाद की घटनाएं नियंत्रण में आती दिख रही हैं। लेकिन, मात्र इससे समाधान का रास्ता नहीं निकलेगा। सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्थितियां अनुकूल बनाने के साथ इस बात पर भी विचार करना होगा कि किन वजहों से पिछले तीन सालों में कश्मीर की स्थिति ज्यादा बिगड़ी है? क्या आंतरिक प्रयासों में कोई कमी है। वार्ताएं रुकी होने से घाटी में जाने-पहचाने चेहरों से अलग अनजान और ज्यादा खतरनाक युवाओं प्रभाव बढ़ा है। इन सब के बावजूद अगर सरकार संवेदना, सहअस्तित्व, आत्मविश्वास और निरंतरता के दायरे को लोगों के सामने स्पष्ट कर पाती है तो स्थितियां बेहतर बनाने में कामयाबी मिल सकती है।
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