जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना – जुर्माना देने में व्यक्तिक्रम होने की दशा के लिये अधिरोपित कारावास तब पर्यवसित हो जायेगा, जब वह जुर्माना या तो चुका दिया जाये या विधि की प्रक्रिया द्वारा उद्गृहीत कर लिया जाये ।
जुर्माना जमा करने की जो अवधि है उसमें विस्तार करने का न्यायालय को अधिकार नहीं माना गया । याचिकाकारगण को भारतीय दंड संहिता की धारा 68 के प्रावधान के तहत उपचार हासिल करना चाहिए ।
जुर्माने के आनुपातिक भाग के दिये जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान – यदि जुर्माना देने में व्यक्तिक्रम होने की दशा के लिये नियत की गई कारावास की अवधि का अवसान होने से पूर्व जुर्माने का ऐसा अनुपात चुका दिया या उद्गृहीत कर लिया जाये कि देने में व्यक्तिक्रम होने पर कारावास की जो अवधि भोगी जा चुकी हो, वह जुर्माने के तब तक न चुकाये गये भाग के आनुपातिक से कम न हो तो कारावास पर्यवसित हो जायेगा ।
जुर्माने का छह वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उद्गृहीत होना एवं सम्पत्ति को दायित्व से मृत्यु उन्मुक्त नहीं करती – जुर्माना या उसका कोई भाग, जो चुकाया न गया हो, दंडादेश दिये जाने के पश्चात छह वर्ष के भीतर किसी भी समय, और यदि अपराधी दंडादेश के अधीन छह वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय हो तो उस कालावधि के अवसान से पूर्व किसी भी समय, उद्गृहीत किया जा सकेगा, और अपराधी की मृत्यु किसी भी सम्पत्ति को, जो उसकी मृत्यु के पश्चात उसके ऋणों के लिये वैध रूप से दायी हो, इस दायित्व से उन्मुक्त नहीं करती ।
कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिये दंड की अवधि – जहां कि कोई बात, जो अपराध है, ऐसे भागों से, जिनमें का कोई भाग स्वयं अपराध है, मिलकर बनी है, वहां अपराधी अपने ऐसे अपराधों में से एक से अधिक के दंड से दंडित न किया जायेगा, जब तक कि ऐसा अभिव्यक्त रूप से उपबंधित न हो ।
जहां कि कोई बात अपराधों को परिभाषित या दंडित करने वाली किसी तत्समय प्रवृत्त विधि की दो या अधिक पृथक परिभाषाओं में आने वाला अपराध है, अथवा
जहां कोई कार्य, जिसमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाधिक से अपराध गठित होता है, मिलकर भिन्न अपराध गठित करते हैं;
वहां अपराधी को उससे गुरुत्तर दंड से दंडित न किया जायेगा, जो ऐसे अपराधों में से किसी भी एक के लिये वह न्यायालय, जो उसका विचारण करे, उसे दे सकता हो ।
कई अपराधों में से एक दोषी व्यक्ति के लिये दंड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है – उन सब मामलों में जिनमें यह निर्णय दिया जाता है कि कोई व्यक्ति उस निर्णय में विनिर्दिष्ट कई अपराधों में से एक अपराध का दोषी है, किंतु यह संदेहपूर्ण है कि वह उन अपराधों में से किस अपराध का दोषी है, यदि वही दंड सब अपराधों के लिये उपबंधित नहीं है तो वह अपराधी उस अपराध के लिये दंडित किया जायेगा, जिसके लिये कम से कम दंड उपबंधित किया गया है ।
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