सुप्रीम कोर्ट द्वारा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को फटकारने के बावजूद आधार कार्ड पर संदेह की राजनीति गहराती जा रही है। भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आधार को तबाही वाली योजना बताते हुए भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को ही खत्म करने की सलाह देकर इस योजना की कमजोरियों की ओर व्यापक रूप से ध्यान आकर्षित किया है। स्वामी ने याद दिलाया है कि 2014 के चुनाव में जब मौजूदा केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार आधार योजना के जनक नंदन नीलेकणी के विरुद्ध बेंगलुरू दक्षिण से चुनाव लड़ रहे थे, तब वहां पर आधार कार्ड एक मुद्दा बना था। स्वामी ने चार भाषणों के माध्यम से नीलेकणी को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया था और अनंत कुमार विजयी हुए थे। इसके बावजूद अगर एनडीए सरकार ने आधार अधिनियम पारित करके इसे समाज कल्याण की योजनाओं से ही नहीं लोगों के बैंक खातों और फोन नंबरों से जोड़ना अनिवार्य कर दिया है तो उसकी दलील भ्रष्टाचार रोकने और कालेधन को खत्म करने की है। यूपीए सरकार की यह योजना अगर एनडीए सरकार ने अपनाई है तो इसमें कोई सार जरूर है। दूसरी ओर अगर इस योजना पर मानवाधिकार संगठनों और जागरूक नागरिकों को संदेह है और आम जनता को कई प्रकार की परेशानियां हो रही हैं तो सरकार को उस पर गौर करना ही होगा। हाल में झारखंड में भूख से होने वाली मौतों का कारण भी आधार कार्ड से लिंक न बन पाने में देखा जा रहा है। उस परिवार का राशन आधार के कारण बंद हो गया। आधार के साथ दूसरी बड़ी दिक्कत बायोमेट्रिक्स के निशान के बदल जाने और कई बार पहचान न हो पाने की भी है पर उससे भी गंभीर समस्या आंकड़ों और पहचान के चोरी होने और सरकार की निगरानी के मोर्चे पर है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने अपने सर्वाधिक महत्वपूर्ण फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। ऐसे में आधार अनिवार्य बनाए जाने पर और सवाल उठने लगे हैं। स्वामी ने कहा भी है कि सरकार को देर-सबेर इसे खत्म ही करना होगा। हालांकि, आधार के विरुद्ध कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं है और उसका विरोध ममता बनर्जी जैसी इक्का-दुक्का राजनेता ही कर रही हैं, फिर भी नागरिक संगठनों और स्वतंत्र नागरिकों ने बहुत सारी याचिकाओं के माध्यम से इसे रद्द किए जाने की मांग की है। देखना है संदेह में घिरते इस लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट कैसे यकीन पैदा करता है।
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