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Thursday, 22 March 2018

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (भाग - 5)


मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम : 

अब हम मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के उपबंधों पर विचार करते हैं । 

अधिनियम का नाम, विस्‍तार एवं प्रवर्तन : 

इस अधिनियम का नाम ‘मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993’ के नाम से सम्‍बोधित किया गया है । 

इसका विस्‍तार सम्‍पूर्ण भारत पर है । परंतु जहाँ तक जम्‍मू और कश्‍मीर का प्रश्‍न है, यह अधिनियम वहां संविधान की सातवी अनुसूची की सूची 1 अथवा सूची 3 में वर्णि विषयों से संबंध में ही लागू होगा । 

इस अधिनियम को 28 सितम्‍बर, 1993 से लागू किया गया है । (धारा 1) 28 सितम्‍बर, 1993 वह तिथि है जिस दिन राष्‍ट्रपति द्वारा मानवाधिकार संरक्षण अध्‍यादेश जारी किया गया था । 

यह अधिनियम सन् 1994 का अधिनियम संख्‍या 10 है तथा उसे राष्‍ट्रपति की अनुमति दिनांक 8 जनवरी, 1994 को प्राप्‍त हुई । 

अधिनियम के आरम्‍भ में ही इसका उद्देश्‍य बताया गया है । इस अधिनियम के मुख्‍यतया निम्नांकित उद्देश्‍य हैं – 

(1) मानव अधिकारों का बेहतर संरक्षण; 

(2) राष्‍ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण आयोग का गठन; एवं 

(3) राज्‍यों में राज्‍य मानवाधिकार संरक्षण आयोगों की स्‍थापना । 

इन्‍हीं उद्देश्‍यों को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए भारतीय गणराज्‍य के 44 वें वर्ष में संसद द्वारा यह अधिनियम पारित किया गया । 

सन् 1993 में ही राष्‍ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्‍छेद 123 के अंतर्गत मानवाधिकार संरक्षण अध्‍यादेश जारी किया गया जिसका मुख्‍य उद्देश्‍य राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्‍यों में राज्‍य मानवाधिकार आयोग का गठन करना था । 

यहाँ यह उल्‍लेखनीय है कि जब संसद का अधिवेशन नहीं चल रहा हो और परिस्थ्‍िातियां ऐसी हों कि उनसे निपटने के लिए कानून की आवश्‍यकता हो; 

तब राष्‍ट्रपति संविधान के अनुच्‍छेद 123 के अंतर्गत अध्‍यादेश जारी कर सकता है और उस अध्‍यादेश का वही प्रभाव होता है जो किसी अधिनियम का होता है । यहां संविधान के अनुच्‍छेद 123 का मूल पाठ निम्‍नलिखित है : 

संसद के विश्रांतिकाल में अध्‍यादेश प्रख्‍यापित करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति –
(1) उस समय को छोड़कर जब संसद के दोनों सदन सत्र में है, यदि किसी समय राष्‍ट्रति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितयां विद्यमान है जिनके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्‍यक हो गया है तो वह ऐसे अध्‍यादेश प्रख्‍यापित कर सकेगा जो उसे परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों । 

(2) इस अनुच्‍छेद के अधीन प्रख्‍यापित अध्‍यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद के अधिनियम का होता है, किंतु प्रत्‍येक ऐसा अध्‍यादेश – 
          (2.1) संसद के दोनों सदनों में समक्ष रखा जाएगा और संसद के पुन: समवेत होने से छह सप्‍ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले दोनों सदन उसके अनुमोदन का संकल्‍प पारित कर देते हैं तो, इनमें से दूसरे संकल्‍प के पारित होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा; और 
          (2.2) राष्‍ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा । 

(3) यदि और जहाँ तक इस अनुच्‍छेद के अधीन अध्‍यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमत करने के लिए संसद इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहां तक वह अध्‍यादेश शून्‍य होगा ।

(Word Count - 476)

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