भारत ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाने के पाकिस्तानी प्रयासों का मुंहतोड़ जवाब देकर दुनिया को उसकी हकीकत याद दिलाने का जो प्रयास किया है वह भारत ही नहीं दुनिया के भी हित में है। हालांकि, भारत ने जिनेवा में हो रहे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 36वें सम्मेलन में अपनी तरफ से कोई मसला नहीं उठाया है बल्कि पाकिस्तान के आरोपों का जवाब दिया है। ऐसे आरोप पाकिस्तान ने इस्लामी देशों के संगठन के माध्यम से पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र के न्यूयॉर्क कार्यालय में भी लगाए थे और उसका भी उचित जवाब दे दिया गया है। उम्मीद है कि 23 सितंबर को जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भाषण देंगी तब वे पाकिस्तान की उन खतरनाक प्रवृत्तियों को उजागर करेंगी, जिससे दुनिया को सतर्क रहने की जरूरत है। इसके संकेत उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और जापानी विदेश मंत्री तारो कोनो के साथ वार्ता के बाद अपनी इस टिप्पणी के साथ दे भी दिया है कि उत्तर कोरिया की परमाणु प्रसार गतिविधियों की जांच होनी चाहिए। पाकिस्तान का यह प्रयास उस खीझ को मिटाने की कोशिश है जो उसे हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भाषण और ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणा-पत्र के माध्यम से मिली है। इन दोनों बयानों में उसे आतंकी संगठनों की शरणस्थली बताया गया है। ऐसे में भारत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ के उस बयान का हवाला देकर उचित ही किया है कि पाकिस्तान को लश्कर-ए-तय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों पर रोक लगानी ही होगी। भारत के लिए पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान में पाकिस्तानी शासकों और सैनिक अधिकारियों के कारनामों को उजागर करना जरूरी है। हालांकि अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों और मंचों से पाकिस्तान को यह सीख दी गई है कि वह भारत के साथ अपने विवादों को दोतरफा मसला बनाकर निपटाए। लेकिन पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। बेहतर हो पाकिस्तान दुनिया के संगठनों और मित्र देशों से यह मांग करे कि वे उसके देश को राजनीतिक रूप से स्थिर करने में मदद करें ताकि वह अपनी समस्याओं को हल कर सके और पड़ोसियों के साथ अमन के साथ रह सके। इसलिए भारत को पाकिस्तान के आरोपों का जवाब देने के साथ उसके प्रति इस रुख की भी मांग रखनी चाहिए।
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