राष्ट्रपति के अध्यादेश के पश्चात् लोक सभा में पुन: मानवाधिकार संरक्षण विधेयक, 1993 लाया गया । अन्तत: यह विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया । इस प्रकार मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 पारित हुआ । इस अधिनियम के पारित हो जाने पर राष्ट्रपति का अध्यादेश निरस्त हो गया ।
यहाँ संक्षेप में संसद की विधयी प्रक्रिया का उल्लेख करना भी समीचीन होगा । संविधान के अनुच्छेद 107, 108 एवं 111 में सामान्य विधि निर्माण की प्रक्रिया बताई गई है । इनका मूल पाठ इस प्रकार है –
अनुच्छेद 107 : विधेयकों के पुन: स्थापना और पारित किये जाने के संबंध में उपबंध –
(1) धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 109 और अनुच्छेद 117 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक संसद के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा ।
(2) अनुच्छेद 108 और अनुच्छेद 109 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक संसद के सदनों द्वारा तब तक पारित किया गया नहीं समझा जाएगा जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित, जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए हैं, उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते हैं ।
(3) संसद में लंबित विधेयक सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा ।
(4) राज्य सभा में लंबित विधेयक, जिसकों लोक सभा ने पारित नहीं किया है, लोक सभा में विघटन पर व्यपगत नहीं होगा ।
(5) कोई विधेयक, जो लोक सभा में लंबित है या जो लोक सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और राज्य सभा में लंबित है, अनुच्छेद 108 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत हो जाएगा ।
अनुच्देद 108 : कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक –
(1) दूसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया गया है; या
(2) विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदन अंतिम रूप से असहमत हो गए हैं; या
(3) दूसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना छह मास से अधिक बीत गए हैं;
तो उस दशा के सिवाय जिसमें लोक सभा का विघटन होने के कारण विधेयक व्यपगत हो गया है, राष्ट्रपति विधेयक पर विचार-विमर्श करने और मत देने के प्रयोजन के लिए सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना, यदि बैठक में हैं तो संदेश द्वारा या यदि वे बैठक में नहीं है तो लोक अधिसूचना द्वारा देगा:
परंतु इस खंड की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी ।
छह मास की ऐसी अवधि की गणना करने में, जो खंड (1) में निर्दिष्ट है, किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसमें उक्त खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित कर दिया जाता है।
(Word Count - 448)
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