संयुक्त राष्ट्र चार्टर :
संयुक्त राष्ट्र चार्टर को मानवाधिकारों का प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज कहा जा सकता है। इस चार्टर में मानवाधिकारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। चार्टर की प्रस्तावना में ही मानवाधिकारों के प्रति अटूट विश्वास व्यक्त किया गया है। चार्टर के अनुच्छेद 1(3) में इसके उद्देश्यों पर पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का यह लक्ष्य है कि वह मानवाधिकारों तथा मूलभूत स्वतंत्रतओं को बिना किसी जाति, भाषा, लिंग अथवा धर्म विषयक भेदभाव के प्रोत्साहित करे। चार्टर के अनुच्छेद 55 में यह व्यवस्था की गई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ मानव उत्थन की ओर अग्रसर होने के लिये जाति, लिंग, धर्म भाषा आदि के आधार पर भेदभाव किये बिना मानवाधिकारों तथा मूलभूत स्वतंत्रओं का आदर तथा उनका पालन सुनिश्चित करें। अनुच्छेद 56 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्रों द्वारा उपरोक्त उद्देश्य को मूर्तरूप प्रदान करने की दिशा में पारित संकल्प निहित है। मानवाधिकारों की प्रभावी क्रियान्विती सुनिश्चित करने के लिये चार्टर में आर्थिक तथा सामाजिक परिषद को विपुल अधिकार प्रदान किये गए हैं। चार्टर में प्रन्यासी प्रणाली पर भी यह दायिव्त अधिरोपित किया गया है कि वह मानवाधिकारों को प्रन्यासी क्षेत्रों में लागू करने का हर संभव प्रयास करे।
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा :
न्यायाधीश लाटरपेट ने मत में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 विश्व की एक महानतम घटना तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। सन् 1945 में जब संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाना हुई तब उसका एक चार्टर तैयार किया गया था। इस चार्टर के अनुच्छेद 68 में मानवाधिकारों के सरंखण के लिये प्रारूप तैयार करने हेतु सन् 1946 में एलोनोर रूजवेल्ट की अध्यक्षता में एक मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया । आयोग ने जून 1948 में मानवाधिकार की एक विश्वव्यापी घोषणा का प्रारूप तैयार किया जिसे संयुक्त् राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 10 दिसम्बर को अंगीकृत किया गया। यही कारण है कि 10 दिसम्बर को सम्पूर्ण विश्व ‘मानवाधिकार दिवस’ के रूप में मनाता है। मानवाधिकार घोषणा पत्र में उन सभी बिन्दुओं को समाहित किया गया है जो गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये आवश्यक है। इस घोषणा पत्र में कुद 30 अनुच्छेद हैं । इसके अनुसार –
1) सभी मनुष्य स्वतंत्र रूप से जनम लेते हैं तथ प्रतिष्ठा एवं अधिकारों की दृष्टि से समान है।
2) प्रत्येक व्यक्ति की जीवन, स्वतंत्रता तथा सुरक्षा का अधिकार है।
3) किसी भी व्यक्ति को दास अथव गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकेगा।
4) किसी भी व्यक्ति के साथ न तो अमानवीय व्यवहार किया जायेगा और न उसे क्रूरतम दंड दिया जायेगा।
5) विधि के समक्ष सभी व्यक्ति समान होंगे।
6) सभी व्यक्तियों को शांतिपूर्वक सम्मेलन करने, भ्रमण करने तथा व्यापार-व्यवसाय करने की स्वतंत्रता होगी।
7) प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास के समान अवसर उपलब्ध होंगे।
8) सभी व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होगा तथा प्रारंभिक शिक्षा नि:शुल्क एवं अनिवार्य होगी।
9) प्रत्येक व्यक्ति को सम्पत्ति रखने का तथा से व्ययन का अधिकार होगा।
10) अभियुक्त को तब तक निर्दोष माना जायेगा जब तक कि उसके विरुद्ध दोषसिद्धि का आदेश पारित न हो जाये।
11) प्रत्येक व्यक्ति को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जायेगा ।
12) किसी भी व्यक्ति को मनमाने तौर पर गिरफ्तार नहीं किया जायेगा और न बंदी बनाया जायेगा ।
13) सभी वयसक पुरुष एवं स्त्रियों को विवाह करने तथा कुटुम्ब बसाने का अधिकार होगा ।
14) सभी को समान कार्य के लिये समान वेतन दिया जायेगा ।
इस प्रकार घोषणा पत्र में विहित उपरोक्त सभी अधिकार वे ही हैं जो भारत में संविधान के भाग तीन एवं चार में मूल अधिकारों एवं राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के रूप में समाहित किये गये हैं।
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