भारत से परे किय गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दंड – भारत से परे किये गए अपराध के लिए जो कोई व्यक्ति किसी भारतीय विधि के अनुसार विचारण का पात्र हो भारत से परे किये गए किसी कार्य के लिए उससे इस संहिता के उपबंधों के अनुसार ऐसा बरता जाएगा, मानो वह कार्य भारत के भीतर किया गया था।
कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना – इस अधिनियम में कि कोई बात सरकार की सेवा के ऑफिसरों, सैनिकों, नौसैनिकों या वायुसैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन को दंडित करने वाले किसी अधिनियम के उपबंधों या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालेगा।
संहिता में कि परीभाषाओं का अपवादों के अध्याधीन समझा जाना – इस संहिता में सर्वत्र अपराध की हर परिभाषा, हर दंड उपबंध और हर ऐसी परिभाषा या दंड का हर दृष्टांत, साधारण अपवाद शीर्षक वाले अध्याया में अंतरविष्ट अपवादों के अध्याधीन समझा जाएग, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाष दंड उपबंध या दृष्टांत में दोहराया न गया हो ।
न्यायाधीश – ‘न्यायाधीश’ शब्द न केवल हर ऐसे व्यक्ति का घोतक होता है, जो पद रूप से न्यायाधीश अभिविहित हो, किन्तु उस हर व्यक्ति का द्योतक है, जो किसी विधि कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दांडिक, अंतिम निर्णय या ऐसा निर्णय जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अंतिम हो जाए, या ऐसा निर्णय जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किये जाने पर अंतिम हो जाए, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो।
न्यायालय – ‘न्यायालय’ शब्द उस न्यायाधीश का, जिसे अकेले ही या न्यायिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, उस न्यायाधीश निकाय का, जिसे एक निकाय के रूप में न्यायिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जबकि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश निकाय न्यायिकत: कार्य कर रहा हो, द्योतक है।
सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य – जबकि कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सबके सामान्य आशय करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो।
जबकि ऐसा कार्य इस कारण आपराधिक है कि वह आपराधिक ज्ञान या आशय से किया गया है – जब कभी कई कार्य, जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किया जाने के कारण ही आपराधिक हैं, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति, जो ऐसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है , उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी के द्वारा किया गया हो।
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