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Tuesday, 10 April 2018

Typing Dictation No :- 9 (45WPM)




अनुच्‍छेद 129 उच्‍चतम न्‍यायालय को अभिलेख न्‍यायालय घोषित करता है और उसे ऐसे न्‍यायालय की सभी शक्तियाँ प्रदान करता है । अभिलेख न्‍यायालय से तात्‍पर्य दो बातों से होता है । प्रथम ऐसे न्‍यायालय के निर्णय और कार्यवाहियाँ लिखित होती हैं । उन्‍हें सर्वदा संजोये रखा जाता है ताकि भविष्‍य में अधीनस्‍थ न्‍यायालयों के समक्ष पूर्व निर्णय के रूप में प्रस्‍तुत की जा सके । द्वितीय ऐसे न्‍यायालय को अपने अवमान के लिए किसी व्‍यक्ति को दंड देने की भी शक्ति होती है । यह शक्ति अभिलेख न्‍यायालय की प्रकृति में ही निहित है । भारतीय संविधान उच्‍चतम न्‍यायालय को अभिव्‍यक्‍त रूप से यह शक्ति प्रदान करता है । न्‍यायालय अवमान अधिनिमय 1971 के अनुसार न्‍यायालय अवमान दो प्रकार के होते हैं । सिविल और आपराधिक ।

उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील उच्‍च न्‍यायालय के अंतिम आदेश के विरुद्ध ही की जा सकती है । अंतिम आदेश वह आदेश होता है जो पक्षकारों के अधिकारों का अंतिम रूप से निपटारा करता है । यदि आदेश के पश्‍चात भी वाद जीवित है, अर्थात जिसमें अधिकारों का अ‍भी निपटारा किया जाना शेष है । तो उसके विरूद्ध अपील नहीं की जा सकती । चुनाव आयोग बनाम वेंकट राव के मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय ने यह निर्देश दिया कि उच्‍च न्‍यायालय के किसी एक न्‍यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध भी अपील की जा सकती है । इस संबंध में न्‍यायाधीशों की संख्‍या का कोई महत्‍व नहीं है ।

इस अनुच्‍छेद के अधीन उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील तभी फाइल की जा सकती है जब संविधान के निर्वचन से संबंधित कोई सारवान विधि प्रश्‍न अर्न्‍तग्रस्‍त हो । कोई ऐसा प्रश्‍न, जो उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा किसी भूतपूर्व मामले में निपटाया जा चुका है, सारवान विधि प्रश्‍न नहीं होता है । सारवान शब्‍द से तात्‍पर्य सार्वजनिक महत्‍व के किसी विषय से नहीं है बल्कि ऐसे मामलों से है जहां विभिन्‍न उच्‍च न्‍यायालयों के बीच किसी विधि प्रश्‍न पर मतभेद है और उस विधि प्रश्‍न पर उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा कोई सीधा निर्णय नहीं है तो वह सारवान विधि प्रश्‍न होगा । इसी प्रकार जहाँ संविधान के उपबंधों को कोई नया निर्वचन किया जाता है वह भी सारवान विधि प्रश्‍न होगा । उच्‍चतम न्‍यायालय के समक्ष अपील में अपीलार्थी उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्णय के औचित्‍य पर उस आधार से भिन्‍न आधार पर चुनौती नहीं दे सकता है जिस पर जिसे प्रमाण पत्र दिया गया था । किंतु उच्‍चतम न्‍यायालय विशेष अनुमति द्वारा अपीलार्थी को दूसरे आधार पर भी चुनौती देने की अनुमति दे सकता है । ऐसी अनुमति उन्‍हीं मामलों में दी जायेगी जहाँ न्‍याय का गला घोंट दिया गया है । उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा प्रमाण पत्र देने के बाद भी उच्‍चतम न्‍यायालय अपील को स्‍वीकार कर सकता है, यदि उसे विश्‍वास हो जाय कि अपील के लाभ नहीं है । यदि उच्‍चतम न्‍यायालय प्रमाण पत्र देने से इनकार कर देता है, और उच्‍चतम न्‍यायालय को विश्‍वास हो जाता है कि मामाले में संविधान की व्‍याख्‍या का सारवान विधि प्रश्‍न अंतर्ग्रस्‍त है तो वह ऐसे निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश के विरूद्ध अनुच्‍छेद 136 के अधीन पक्षकार को उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील की विशेष अनुमति दे सकता है ।

(Word Count - 485)

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