मानवाधिकारों की अवधारणा तथा इसका संरक्षण करने वाली संस्थाओं को समझने के बाद अब हम लोकतंत्र में पुलिस की भूमिका, उसके कार्य और जवाबदेही को जानने की दिशा में आगे बढ़ेंगे । पुलिस द्वारा जनता के साथ बर्ताव में मानवाधिकारों का पालन और उनके प्रति सम्मान, जनोन्मुखी पुलिस की ओर प्रवर्तन की दिशा में एक सकारात्मक कदम है । आप इस इकाई में कानून के शासन के सिद्धांत के बारे में पढ़ेंगे, जो पुलिस द्वारा शक्ति के मनमाने प्रयोग पर अंकुश रखता है तथा पुलिस को नागरिकों की सुरक्षा तथा बचाव का अधिकार देता है । इस इकाई में पाठक उस आचार संहिता से परिचित होंगे, जो पुलिस के रोजमर्रा के क्रिया-कलापों का संचालन करती है, और मानवाधिकार उल्लंघन को जन्म देने वाली शक्ति के अतिशय प्रयोग पर लगाम भी रखती है । यह ईकाई पुलिस सुधार के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों से भी परिचित करवाएगी ।
इस इकाई के अध्ययन के बाद आप लोकतंत्र में पुलिस की भूमिका, कार्य और जवाबदेही को परिभाषित कर सकेंगे । पुलिस प्रक्रिया में कानून के सिद्धांत तथा मानवाधिकारों के प्रति सम्मान को समझ सकेंगे । उस आचार संहिता की रूप-रेखा को जान पाएँगे जो पुलिस के रोजमर्रा के कार्य-कलापों का संचालन करती है । पुलिस के लिए मानवाधिकारों के मानकों तथा पुलिस सुधार हेतु उठाए गए कदमों का मूल्यांकन कर सकेंगे । पुलिस द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन को इंगित कर सकेंगे और लोगों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु रोकथाम के उपायों को आत्मसात कर सकेंगे ।
पुलिस एक सार्वजनिक सेवा है – पुलिस नागरिकों के लिए संपर्क का पहला प्रत्यक्ष बिंदु है । यह इकलौती एजेंसी है जिसके पास लोगों के साथ संपर्क का सबसे व्यापक संभाव्य अवसर है । पुलिस कार्य प्राय: निरोधात्मक तथा नियामक प्रकृति के होते हैं, इस कारण एक नागरिक के मन में पुलिस की छवि, जीवन, स्वतंत्रता और आजादी में दखल देने वाले की हो जाती है । अपराध को रोकना और व्यवस्था बनाए रखना पुलिस का कर्तव्य है । जब भी कानून का उल्लंघन होता है तो पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह उल्लंघन के आरोपी को पकडे़ तथा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से न्याय के लिए उसे अदालत में पेश करे ।
पुलिस अनिवार्यत: एक सार्वजनिक सेवा है और लोकतंत्र में जनता के प्रति जवाबदेही होती है । यह ऐसी सार्वजनिक संस्था है जो सरकार की किसी भी अन्य ऐजेंसी की तुलना में जनसंख्या के बड़े हिस्से को उनके रोजमर्रा के जीवन में व्यावक रूप से प्रभाव डालती है । वास्तव में पुलिस जन आलोचना का सर्वाधिक निशाना बनने वाली संख्या भी है इसलिए पुलिस द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन एवं दुर्व्यवहार तुरंत ही मीडिया तथा मानवाधिकार संस्थाओं की आलोचनात्मक निगाह में आ जाता है । एक सार्वजनिक संस्था के रूप में पुलिस का गठन एक सशक्तीकरण कानून द्वारा होता है । इसलिए पुलिस को जनता के प्रति अधिक उत्तरदायी होना चाहिए ।
(Word Count - 447)
(Word Count - 447)