यदि आप इस ब्‍लोग में हैं तब तो आप हिंदी टाइपिंग और डिक्‍टेशन से परिचित ही होंगे। यह ब्‍लोग उन सभी अभ्यार्थियों की सहायता के लिए प्रारंभ किया गया है जो हिंदी टाइपिंग के क्षेत्र में अपना भविष्‍य बनाना चाहते हैं। आप अपनी हिंदी टाइपिंग को अधिक शटीक बनाने के‍ लिए हिंंदी के नोट्स और डिक्‍टेशन की सहायता ले सकते हैं।
If you are in this blog then you will be familiar with Hindi typing and dictation. This blog has been started to help all those candidates who want to make their future in the field of Hindi typing. You can get help from Hindi notes and dictation to make your Hindi typing more effective.

Thursday, 26 April 2018

Typing Dictation No. :- 13 (45WPM)




न्‍यायालय से किए गए वचनबंध के बारे में न्‍यायालय अवमान का दोषी पाया गया व्‍यक्ति, कोई कम्‍पनी है, वहां प्रत्‍येक व्‍यक्ति जो अवमान के किए जाने के समय कम्‍पनी के कारोबार के संचालन के लिए कम्‍पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्‍तरदायी थी, और साथ ही वह कम्‍पनी भी, अवमान के दोषी समझे जाएंगे और न्‍यायालय की इजाजत से, दण्‍ड का प्रवर्तन, प्रत्‍येक ऐसे व्‍यक्ति को सिविल कारागार में निरद्ध करके किया जा सकेगा । 

उपधारा (4) में किसी बात के होते हुए भी, जहां उसमें निर्दिष्‍ट न्‍यायालय अवमान किसी कम्‍पनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अवमान कम्‍पनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्‍य अधिकारी की सम्‍मति अथवा मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्‍य अधिकारी भी उस अवमान का दोषी समझा जाएगा और न्‍यायालय की इजाजत से, दण्‍ड का प्रवर्तन, उस निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्‍य अधिकारी को सिविल कारागार में निरुद्ध करके किया जा सकेगा । 

न्‍यायालय, न्‍यायालय अवमान के लिए किसी कार्यवाही में, किसी विधिमान्‍य प्रतिरक्षा के रूप में सत्‍य द्वारा न्‍यायानुमत की अनुज्ञा दे सकेगा यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि वह लोकहित में है और उक्‍त प्रतिरक्षा का आश्रय लेने के लिए अनुरोध सद्भाविक है । 

जहां अवमान उच्‍चतम न्‍यायालय या किसी उच्‍च न्‍यायालय के सन्‍मुख है वहां प्रक्रिया – जब यह अभिकथित किया जाता है या उच्‍चतम या उच्‍च न्‍यायालय को अपने अवलोकन पर यह प्रतीत होता है कि कोई व्‍यक्ति उसकी उपस्थिति में या उसके सुनते हुए किए गए अवमान का दोषी है तब वह न्‍यायालय ऐसे व्‍यक्ति को अभिरक्षा में निरुद्ध कर सकेगा और न्‍यायालय के उठने से पूर्व उसी दिन किसी भी समय या उसके पश्‍चात ऐसे साक्ष्‍य लोने के पश्‍चात जो आवश्‍यक हो या जो ऐसे व्‍यक्ति द्वारा दिया जाए और उस व्‍यक्ति को सुनने के पश्‍चात, चाहे तत्‍काल या स्‍थगन के पश्‍चात, आरोप के मामले का अवधारण करने के लिए अग्रसर होगा । 

उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां कोई व्‍यक्ति जिस पर उस उपधारा के अधीन अवमान का आरोप लगाया गया है, चाहे मौखिक रूप से या लिखित रूप से, आवेदन करता है कि उसके विरुद्ध आरोप का विचारण उस न्‍यायाधीश या उन न्‍यायाधीशों से, जिसकी या जिनकी उपस्थिति में या जिसके या जिनके सुनते हुए अपराध का किया जाना अभिकथित है, भिन्‍न किसी न्‍यायाधीश द्वारा किया जाए और न्‍यायालय की राय है कि ऐसा करना सत्‍य है और आवेदन को उचित न्‍याय प्रशासन के हित में मंजूर किया जाना चाहिए तो वह उस मामले को, मामले के तथ्‍यों के कथन सहित मुख्‍य न्‍यायमूर्ति के समक्ष ऐसे निदेशों के लिए रखवाएगा जिन्‍हें वह उसके विचारण की बाबत जारी करना ठीक समझे ।

(Word Count - 448)

Typing Dictation No. :- 4 (40WPM)




मानहानि – जो कोई या तो बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शबदों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृष्‍य रूपणों द्वारा किसी व्‍यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित कर्ता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्‍यक्ति की ख्‍याति की अपहानि की जाए या यह जानते हुए या विश्‍वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित कर्ता है ऐसे लांछन से ऐसे व्‍यक्ति की ख्‍याति की अपहानि होगी, अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्‍यक्ति की मानहानि कर्ता है । 

किसी मृत व्‍यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्‍यक्ति की ख्‍याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि कर्ता और उसके परिवार या अन्‍य निकट सम्‍बन्धियों की भावनाओं को उपहत करने के लिए आशयित हो । किसी कम्‍पनी या संगम या व्‍यक्तियों के समूह के सम्‍बन्‍ध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा । अनुकल्‍प के रूप में, या व्‍यंगोक्ति के रूप में अभिव्‍यक्‍त लांछन मान‍हानि की कोटि में आ सकेगा । कोई लांछन किसी व्‍यक्ति की ख्‍याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्‍यक्षत: या अप्रत्‍यक्षत: उस व्‍यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्‍वरूप को हेय न करे या उस व्‍यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके शील को हेय न करे या उस व्‍यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विश्‍वास न कराए कि उस व्‍यक्ति का शरीर घृणोत्‍पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्‍ट समझी जाती है । 

‘क’ यह विश्‍वास कराने के आशय से कि ‘य’ ने ‘ख’ की घड़ी अवश्‍य चुराई है, कहता है, ‘’य एक ईमारदार व्‍यक्ति है, उसने ‘ख’ की घड़ी कभी नहीं चुराई है’’ । जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्‍तर्गत न आता हो यह मानहानि है। 

‘क’ से पूछा है कि ‘ख’ घड़ी किसने चुराई है । ‘क’ य‍ह विश्‍वास कराने के आशय से कि ‘य’ ने ख की घड़ी चुराई है, ‘य’ की ओर संकेत कर्ता है जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्‍तर्गत न आता हो, यह मानहानि है । 

‘क’ यह विश्‍वास करने के आशय से कि ‘य’ ने ‘ख’ की घड़ी चुराई है, ‘य’ का एक चित्र खींचता है जिसमें वह ‘ख’ की घड़ी लेकर भाग रहा है । जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अंगर्तग न आता हो यह मानहानि है । 

(Word Count - 406)

Typing Dictation No. :- 3 (40WPM)




लोक सेवक का स्‍वेच्‍छा राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना – जो कोई लोक सेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी को अभिरक्षा में रखते हुए, स्‍वेच्‍छया ऐसे कैदी को किसी ऐसे स्‍थान से जिसमें ऐसा कैदी परिरूद्ध है, निकल भागने देगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अ‍वधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने से भी दंडनीय होगा । 

उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना – जो कोई लोक सेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी की अभिरक्षा में रखते हुए उपेक्षा से ऐसे कैदी का किसी ऐसे परिरोध स्‍थान से जिसमें ऐसा कैदी परिरूद्ध है, निकल भागना सहन करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अ‍वधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दंडनीय होगा । 

ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुड़ाना या संश्रय देना – जो कोई जानते हुए किसी राजकैदी या युद्धकैदी को विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने में मदद या सहायता देगा, या किसी ऐसे कैदी को छुड़ाएगा, या छुड़ाने का प्रयत्‍न करेगा, या किसी ऐसे कैदी को, जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, संश्रय देगा या छिपाएगा या ऐसे कैदी के फिर से पकड़े जाने का प्रतिरोध करेगा या करने का प्रयत्‍न करेगा, वह आजीवन करावास से, जिनकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने से भी दंडनीय होगा । 

स्‍पष्‍टीकरण – कोई राजकैदी या युद्धकैदी, जिसे अपने पैरोल पर भारत में कतिपय सीमाओं के भीतर, यथेच्‍छ विचरण की अनुज्ञा है, विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, यह तब कहा जाता है, जब वह उन सीमाओं से परे चला जाता है, जिनके भीतर उसे यथेच्‍छ विचरण की अनुज्ञा है । 

विद्रोह का दुष्‍प्रेरण या किसी सैनिक, नौसेनिक या वायुसैनिक को कर्तव्‍य से विचलित करने का प्रयत्‍न करना – जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्‍प्रेरण करेगा, या किसी ऐसे ऑफिसर, सैनिक या नौसैनिक या वायुसैनिक को उसकी राजनिष्‍ठा या उसके कर्तव्‍य से विचलित करने का प्रयत्‍न करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दं‍डनीय होगा । 

स्‍पष्‍टीकरण – इस धारा में ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक और वायुसैनिक शब्‍दो के अंतर्गत कोई भी व्‍यक्ति आता है, जो यथास्थिति, आर्मी एक्‍ट, सेना अधिनियम 1950, नेवल डिसिप्लिन एक्‍ट, इंडियन नेवी एक्‍ट 1934, एअर फोर्स एक्‍ट या वायुसेना अधिनियम, 1950 के अध्‍याधीन हो ।

Tuesday, 24 April 2018

Typing Dictation No :- 2 (40WPM)




राज्‍यद्रोह, जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्‍दों द्वारा या संकेतों द्वारा, दृश्‍यरूपण द्वारा या अन्‍यथा भारत में विधि द्वारा स्‍थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का, प्रयत्‍न करेगा या अप्रीति प्रदीप्‍त करेगा या प्रदीप्‍त करने का प्रयत्‍न करेगा, वह आजीवन कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा । 

स्‍पष्‍टीकरण – ‘’अप्रीति’’ पद के अंतर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्‍त भावनाएं आती हैं । 

स्‍पष्‍टीकरण – घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्‍त किए बिना या प्रदीप्‍त करने का प्रयत्‍न किए बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उसको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अननुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्‍पणियां इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं । 

स्‍पष्‍टीकरण – घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्‍त किए बिना या प्रदीप्‍त करने का प्रयत्‍न किए बिना, सरकार की प्रशासन या या अन्‍य क्रिया के प्रति अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्‍पणियां इस धारा के अधीन गठित नहीं करती । 

भारत सरकार से मैत्री संबंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरूद्ध युद्ध करना । जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति की सरकार के विरूद्ध युद्ध करेगा या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्‍न करेगा, या ऐसा युद्ध करने के लिए दुष्‍प्रेरण करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुमार्ना जोड़ा जा सकेगा या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनका अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा । 

जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाली किसी शक्ति के राज्‍यक्षेत्र में लूटपाट करेगा, या लूटपाट करने की तैयारी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने से और ऐसी लूटपाट में लाई जाने के लिए आशयित, या ऐसी लूटपाट द्वारा अर्जित सम्‍पत्ति के समपहरण से भी दंडनीय होगा । 

धारा 125 और धारा 126 वर्णित युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई सम्‍पत्ति प्राप्‍त करना - जो कोई किसी सम्‍पत्ति को यह जानते हुए प्राप्‍त करेगा कि वह धारा 125 और धारा 126 में वर्णित अपराधों में से किसी के किए जाने में ली गई है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने से और इस प्रकार प्राप्‍त की गई सम्‍पत्ति के समपहरण से भी दंडनीय होगा ।

(Word Count - 407)

Monday, 23 April 2018

Typing Dictation No :- 1 (40WPM)



जो कोई भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्‍न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्‍प्रेरण करेगा, वह मृत्‍यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । ‘क’ भारत सरकार के विरूद्ध विप्‍लन में सम्मिलित होता है । ‘क’ ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है । जो कोई धारा 121 द्वारा दंडनीय अपराधों में से कोई अपराध करने के लिए भारत के भीतर या बाहर षडयंत्र करेगा, या केंद्रीय सरकार को या किसी राज्‍य की सरकार को आपराधिक बल द्वारा या आपरा‍धिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करने का षडयंत्र करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । इस धारा के अधीन षड्यंत्र गठित होने के लिए यह आवश्‍यक नहीं है कि उसके अनुसरण में कोई कार्य का अवैध लोप गठित हुआ हो। 

भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना । जो कोई भारत सरकार के विरूद्ध या तो युद्ध करने, या युद्ध करने की तैयारी करने के आशय से, आयुध या गोलाबारूद संग्रह करेगा, या अन्‍यथा युद्ध करने की तैयारी करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अविध दस वर्ष से अधिक की नहीं होगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा । 

जो कोई भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करने की परिकल्‍पना के अस्तित्‍वों को किसी कार्य द्वारा, या किसी अवैध लोप द्वारा, इस आशय से कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाए, या यह संभाव्‍य जानते हुए कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाएगा, छिपाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दंडनीय होगा। 

किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए वि‍वश करने के आशय से राष्‍ट्रपति, राज्‍यपाल आदि पर हमला करना । जो कोई भारत के राष्‍ट्र‍पति या किसी राज्‍य के राज्‍यपाल को ऐसे राष्‍ट्रपति या राज्‍यपाल की विधिपूर्ण शक्तियांं में से किसी शक्ति का किसी प्रकार प्रयोग करने के लिए उत्‍प्रेरित करने के आशय से, ऐसे राष्‍ट्र‍पति या राज्‍यपाल पर हमला करेगा, उसे आपर‍ाधिक बल द्वारा या आतंकित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दंडनीय होगा ।

(Word Count - 404)

Typing Dictation No :- 12 (45WPM)




संक्षेप में आवेदन पत्र सारत: यह है कि दिनांक 18 को समय करीब 10 बजे सुबह आवेदक मेन रोड के किनारे खड़ा था, उसी समय अनावेदक क्रमांक 1 वाहन चालक वाहन को तेजगति एवं लापरवाहीपूर्वक चलाते हुए आया और आवेदक को जोरदार टक्‍कर मार दिया, जिससे आवेदक को दाहिने कंधे में, बांए हाथ में, दाहिने हाथ में, गले में एवं शरीर के अन्‍य भागों में गंभीर चोटें कारित होने से स्‍थायी विकलांगता कारित हुई तथा वाहन को अनावेदक क्रमांक 1 द्वारा अनावेदक क्रमांक 2 के हितलाभ एवं नियोजन में चलाया जा रहा था तथा वाहन अनावेदक क्रमांक 3 के यहां विधिवत बीमित था, घटना की रिपोर्ट संबंधित थाने में की गई, अनावेदक क्रमांक 1 के विरुद्ध प्रकरण पंजीबद्ध किया गया । 

प्रकरण में आवेदक द्वारा यह भी अभिवचन किया गया है कि वह दुर्घटना के पूर्व मजदूरी का काम करके अपनी आय अर्जित करता था किंतु उक्‍त दुर्घटना में आई गंभीर चोटों के कारण स्‍थायी विकलांगता के कारण आवेदक पूर्व की भांति कार्य करने में एवं आय अर्जित करने में पूर्णत: असमर्थ हो गया है, जिससे उसे विभिन्‍न मदों में क्षतिपूर्ति अनावेदकगण से संयुक्‍तत: या पृथकत: दिलवाये जाने की प्रार्थना की गई है । 

अनावेदक क्रामंक 1 एवं 2 की ओर से प्रस्‍तुत जवाबदावा में उपरोक्‍त स्‍वीकृत तथ्‍यों के अतिरक्ति आवेदन पत्र के तथ्‍यों का विशिष्‍टत: एवं सामान्‍यत: प्रत्‍याख्‍यान करते हुए अतिरिक्‍त पत्र के तथ्‍यों का विशिष्‍टत: एवं सामान्‍यत: प्रत्‍याख्‍यान करते हुए अतिरिक्‍त कथन किया गया है कि आवेदक द्वारा दिनांक 18 को अनावेदकगण के वाहन से दुर्घटना होना बताया गया है जबकि उक्‍त वाहन से किसी भी प्रकार की कोई दुर्घटना घटित नहीं हुई है, तथा आवेदक स्‍वयं की लापरवाही से दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ था, जिसे अनावेदक क्रमांक 1 अपने वाहन में बिठालकर जिला अस्‍पताल लाया था, बाद में आवेदक ने मिथ्‍या आधारों पर अनावेदक क्रमांक 1 के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा दी तथा अनावेदक क्रमांक 1 द्वारा सावधानीपूर्वक वाहन का संचालन यातायात के नियमों के तहत किया जाता है, उसके द्वारा संचालित वाहन से कभी भी आवेदक को कोई चोट कारित नहीं हुई है तथापि यदि यह पाया जाता कि उक्‍त वाहन से कोई घटना घटित हुई है तो घटना दिनांक को वाहन विधिवत, लाइसेंधारी चालक के द्वारा संचालित किया जा रहा था तथा उक्‍त वाहन अनावेदक क्रमांक 3 के पास बीमाकृत है, ऐसी स्थिति में उक्‍त क्षतिपूर्ति प्रदाय करने का दायित्‍व अनावेदक क्रमांक 3 पर है अत: आवेदक द्वारा प्रस्‍तुत याचिका का सव्‍यय निरस्‍त किये जाने का निवेदन किया गया है । 

अनावेदक क्रमांक 3 बीमा कंपनी की ओर से प्रस्‍तुत जवाबदावा में आवेदक पत्र के तथ्‍यों का विशिष्‍टत: एवं सामान्‍यत: प्रत्‍याख्‍यान करते हुए अतिरिक्‍त कथन किया गया है कि कथित दुर्घटना के समय प्रश्‍नधीत वाहन के चालक अनावेदक क्रमांक 1 के पास उक्‍त वाहन का चालन किये जाने हेतु वैध एवं प्रभावशील चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी ।

(Word Count - 456)

Sunday, 15 April 2018

Typing Dictation No :- 11 (45WPM)




अनुच्‍छेद 323क संसद को विधि द्वारा, संघ या किसी राज्‍य के क्रियाकलाप से संबंधित लोक सेवाओं या पदों के लिए भर्ती तथा नियुक्‍त व्‍यक्तियों की सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और परिवादों के प्रशासनिक अधिकरणों द्वारा न्‍यायनिर्णयन या विचारण के लिए उपबंध करने हेतु सशक्‍त करता है । विधि संघ के लिए एक प्रशासनिक अधिकरण और प्रत्‍येक राज्‍य या दो या अधिक राज्‍यों के लिए एक पृथ्‍क् प्रशासनिक अधिकरण की स्‍थापना के लिए उपबंध कर सकेगी । विधि सेवा मामले विषयक विवादों के न्‍यायनिर्णयन को सिविल न्‍यायालयों और उच्‍च न्‍यायालयों के हाथों से वापस ले सकेगी ।

अनुच्‍छेद 323क के उपबंधों के अनुसरण में, संसद ने संघ के लिए प्रशासिनक अधिकरण अर्थात केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और राज्‍य के लिए पृथ्‍क प्रशासनिक अधिकरण या दो या अधिक राज्‍यों के लिए संयुक्‍त प्रशासनिक अधिकरण स्‍थापित करने के लिए प्रशासनिक अधिकरण अधिनयिम 1985 अधिनियमित किया । प्रशासनिक अधिकरणों की स्‍थापना करना आवश्‍यक हो गया चूंकि सेवा विषयक अधिकांश मामले विभिन्‍न न्‍यायालयों में लंबित थे । यह प्रत्‍याशा की गई कि प्रशासनिक अधिकरणों की स्‍थापना से न केवल न्‍यायालयों का बोझ कर होगा बल्कि व्‍यथित लोक सेवकों को शीघ्र अनुतोष भी उपलब्‍ध होगा ।

एक मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय को संवैधानिक ठोस सिद्धांतों के अनुसार प्रशासनिक अधिकरणों को कार्यकरण सुनिश्चित करने के लिए कतिपय उपाय करने के निदेश दिए । संशोधनकारी अधिनियम द्वारा अधिनियम में परिवर्तन किए गए । अनुच्‍छेद 32 के अधीन उच्‍चतम न्‍यायालय की अधिकारिता को प्रत्‍यावर्तित किया गया । प्रशासनिक अधिकरणों के स्‍वरूप और अंतर्वस्‍तु विषयक कतिपय संशोधनों के अधीन रहते हुए एक मामले में अंतत: अधिनियम की संवैधानिक विधिमान्‍यता को कायम रखा गया । एक अन्‍य संशोधनकारी अधिनियम रखा गया । एक अन्‍य संशोधनकारी अधिनियम द्वारा सुझाए गए संशोधनों को अधिनियम में समाविष्‍ट किया गया । इस प्रकार, प्रशासनिक अधिकरण उच्‍च न्‍यायालयों का प्रभावी और वास्‍तविक स्‍थान प्राप्‍त किया ।

देश के विभिन्‍न उच्‍च न्‍यायालयों और अन्‍य न्‍यायालयों में लंबित मामलों के बोझ कम करने की दृष्टि से संसद ने प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 अधिनियम अधिनियमित किया था जो, जहां तक केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण से संबंधित इसके उपबंधों का संबंध है, 1 जुलाई 1985 को प्रवृत्‍त हुआ । केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण 2 अक्‍टूबर 1985 को स्‍थापित किया गया । केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के न्‍यायपीठ संपूर्ण देश में 17 स्‍थानों पर स्थित हैं । राज्‍य प्रशासनिक अधिकरण की कतिपय राज्‍यों में स्‍थापित किए गए हैं ।

प्रशासनिक अधिकरणों की स्‍थापना संघ या किसी राज्‍य के अथवा सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी स्‍थानीय या अन्‍य प्राधिकारी के अथवा सरकार के स्‍वामित्‍व या नियंत्रण के अधीन किसी निगम अथवा सोसायटी के कार्यकलाप से संबंधित लोक सेवाकों और पदों के लिए भर्ती तथा नियुक्‍त व्‍यक्तियों की सेवा की शर्तों से संबंधित विवादों के न्‍यायनिर्णयन के लिए की गई थी । यह संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 46 द्वारा संविधान में अंत:स्‍थापित अनुच्‍छेद 323क के उपबंधों के अनुसरण में किया गया था ।


(Word Count - 453)

Wednesday, 11 April 2018

Typing Dictation No :- 10 (45WPM)




अन्‍य प्रतिवादों पर कोई प्रभाव न होना – इस अधिनियम में अंतर्विष्‍ट किसी भी बात का यह अर्थ न लगाया जाएगा कि उसमें यह विवक्षित है कि कोई अन्‍य ऐसा प्रतिवाद जो न्‍यायालय अवमान की किन्‍हीं कार्यवाहियों में विधिमान्‍य प्रतिवाद होगा, केवल इस अधिनियम के उपबंधों के कारण ही उपलभ्‍य नहीं रहा है । 

अधिनियम द्वारा, अवमान की परिधि का बढ़ाना, विवक्षित न होना – इस अधिनिमय के अंतर्विष्‍ट किसी भी बात का यह अर्थ न लगाया जाएगा कि उसमें यह विवक्षित है कि कोई ऐसी अवज्ञा या ऐसा भंग, प्रकाशन या अन्‍य कार्य जो इस अधिनिमय से अन्‍यथा न्‍यायालय अवमान के रूप में दण्‍डनीय न होता ऐसा दण्‍डनीय है । 

अधीनस्‍थ न्‍यायालयों के अवमान के लिए दण्डित करने की उच्‍च न्‍यायालय की शक्ति – प्रत्‍येक उच्‍च न्‍यायालय को अपने अधीनस्‍थ न्‍यायालयों के अवमान के बारे में वह अधिकारिता, शक्तियाँ है और प्राधिकार प्राप्‍त होंगे और वह उसी प्रक्रिया और पद्धति के अनुसार उनका प्रयोग करेगा जैसे उसे स्‍वयं अपने अवमान के बारे में प्राप्‍त है और जिसके अनुसार वह उनका प्रयोग करता है ।

परंतु कोई भी उच्‍च न्‍यायालय अपने अधीनस्‍थ न्‍यायालय के बारे में किए गए अभिकथित अवमान का संज्ञान नहीं करेगा जबकि वह अवमान भारतीय दंड संहिता 1860 का 45 के अधीन दण्‍डनीय अपराध है ।

अधिकारिता के बाहर किए गए अपराधों या पाए गए अपराधियों का विचारण करने की उच्‍च न्‍यायालय कि शक्ति – उच्‍च न्‍यायालय को अपने या अपने अधीनस्‍थ किसी न्‍यायालय के अवमान की जाचं करने और उसका विचारण करने की अधिकारिता होगी चाहे ऐसे अवमान का उसकी अधिकारिता की स्‍थानीय सीमाओं के भीतर किया जाना अभिकथित हो या बाहर और चाहे वह व्‍यक्ति जो अवमान का दोषी अभिकथित है ऐसी सीमाओं के भीतर हो या बाहर ।

न्‍यायालय अवमान के लिए दण्‍ड – इस अधिनियम या किसी अन्‍य विधि में अभिव्‍यक्‍त रूप से जैसा अन्‍यथा उपबंधित है इसके सिवाय न्‍यायालय अवमान सादे करावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो 2000 रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकेगा । परंतु न्‍यायालय को समाधानप्रद रूप से माफी मांगे जाने पर अभियुक्‍त को उन्‍मोचित किया जा सकेगा या अधिनिर्णीत दण्‍ड का परिहार किया जा सकेगा ।

तत्‍समय प्रवृत्‍त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी कोई न्‍यायालय चाहे अपने या अपने अधीनस्‍थ किसी न्‍यायालय के अवमान के बारे में उपधारा (1) में विनिर्दिष्‍ट दण्‍ड से अधिक दण्‍ड अधिरोपित नहीं करेगा । इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, जब कोई व्‍यक्ति सिविल अवमान का दोषी पाया जाता है तब यदि न्‍यायालय यह समझता है कि जुर्माने से न्‍याय का उद्देश्‍य पूरा नहीं होगा और कारावास का दण्‍ड आवश्‍यक है, तो वह उसे सादे कारावास से दण्‍डादिष्‍ट करने के बजाय यह निर्देश देगा कि वह छह मास से अनाधिक की इतीन अवधि के लिए, जितनी न्‍यायालय ठीक समझे, सिविल कारागार में निरुद्ध रखा जाए ।

(Word Count - 460)

Tuesday, 10 April 2018

Typing Dictation No :- 2 (30WPM)




राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को महेंद्र सिंह धोनी को देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया। खास बात ये कि 7 साल पहले आज के दिन ही धोनी ने भारत को क्रिकेट वर्ल्ड कप का खिताब दिलाया था। धोनी के अलावा बिलियर्ड में 19 बार के वर्ल्ड चैम्पियन पंकज आडवाणी को भी पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति भवन में 44 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से नवाजा गया। समारोह में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई हस्तियां मौजूद रहीं। धोनी लेफ्टिनेंट कर्नल की यूनिफॉर्म में राष्ट्रपति भवन में सम्मान हासिल करने पहुंचे थे। इस दौरान उनकी पत्नी साक्षी धोनी भी मौजूद थीं। बता दें कि 1 नवंबर 2011 को प्रादेशिक सेना ने धोनी को लेफ्टिनेंट कर्नल की मानद उपाधि से नवाजा था। इससे पहले कपिल देव ही ऐसे क्रिकेटर थे, जिन्हें ऐसा सम्मान मिला था। धोनी को 2007 में राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड दिया गया था। उन्हें 2009 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। धोनी को 2008 और 2009 में आईसीसी वन डे प्लेयर ऑफ द ईयर अवॉर्ड मिला। दो बार ये अवॉर्ड पाने वाले धोनी पहले क्रिकेटर हैं। आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट इलेवन में वे तीन बार चुने गए। आईसीसी वर्ल्ड वन डे इलेवन में धोनी रिकॉर्ड 8 बार चुने जा चुके हैं, इनमें 5 बार कैप्टन के तौर पर चुना गया। 2 अप्रैल 2011 क्रिकेट वर्ल्ड कप का फाइनल मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेला गया था। श्रीलंका ने 274 रन बनाए थे। जवाब में भारत की टीम ने ये लक्ष्य 48.2 ओवर में हासिल कर लिया था । धोनी ने छक्का मारकर भारत को वर्ल्डकप का खिताब दिलाया था। इस मैच में धोनी ने 91 रनों की पारी खेली थी और उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया था।बता दें कि 25 जनवरी को देश की 85 हस्तियों को पद्म पुरस्कार देने का एलान किया गया था।

(Word Count - 313)

Typing Dictation No :- 9 (45WPM)




अनुच्‍छेद 129 उच्‍चतम न्‍यायालय को अभिलेख न्‍यायालय घोषित करता है और उसे ऐसे न्‍यायालय की सभी शक्तियाँ प्रदान करता है । अभिलेख न्‍यायालय से तात्‍पर्य दो बातों से होता है । प्रथम ऐसे न्‍यायालय के निर्णय और कार्यवाहियाँ लिखित होती हैं । उन्‍हें सर्वदा संजोये रखा जाता है ताकि भविष्‍य में अधीनस्‍थ न्‍यायालयों के समक्ष पूर्व निर्णय के रूप में प्रस्‍तुत की जा सके । द्वितीय ऐसे न्‍यायालय को अपने अवमान के लिए किसी व्‍यक्ति को दंड देने की भी शक्ति होती है । यह शक्ति अभिलेख न्‍यायालय की प्रकृति में ही निहित है । भारतीय संविधान उच्‍चतम न्‍यायालय को अभिव्‍यक्‍त रूप से यह शक्ति प्रदान करता है । न्‍यायालय अवमान अधिनिमय 1971 के अनुसार न्‍यायालय अवमान दो प्रकार के होते हैं । सिविल और आपराधिक ।

उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील उच्‍च न्‍यायालय के अंतिम आदेश के विरुद्ध ही की जा सकती है । अंतिम आदेश वह आदेश होता है जो पक्षकारों के अधिकारों का अंतिम रूप से निपटारा करता है । यदि आदेश के पश्‍चात भी वाद जीवित है, अर्थात जिसमें अधिकारों का अ‍भी निपटारा किया जाना शेष है । तो उसके विरूद्ध अपील नहीं की जा सकती । चुनाव आयोग बनाम वेंकट राव के मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय ने यह निर्देश दिया कि उच्‍च न्‍यायालय के किसी एक न्‍यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध भी अपील की जा सकती है । इस संबंध में न्‍यायाधीशों की संख्‍या का कोई महत्‍व नहीं है ।

इस अनुच्‍छेद के अधीन उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील तभी फाइल की जा सकती है जब संविधान के निर्वचन से संबंधित कोई सारवान विधि प्रश्‍न अर्न्‍तग्रस्‍त हो । कोई ऐसा प्रश्‍न, जो उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा किसी भूतपूर्व मामले में निपटाया जा चुका है, सारवान विधि प्रश्‍न नहीं होता है । सारवान शब्‍द से तात्‍पर्य सार्वजनिक महत्‍व के किसी विषय से नहीं है बल्कि ऐसे मामलों से है जहां विभिन्‍न उच्‍च न्‍यायालयों के बीच किसी विधि प्रश्‍न पर मतभेद है और उस विधि प्रश्‍न पर उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा कोई सीधा निर्णय नहीं है तो वह सारवान विधि प्रश्‍न होगा । इसी प्रकार जहाँ संविधान के उपबंधों को कोई नया निर्वचन किया जाता है वह भी सारवान विधि प्रश्‍न होगा । उच्‍चतम न्‍यायालय के समक्ष अपील में अपीलार्थी उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्णय के औचित्‍य पर उस आधार से भिन्‍न आधार पर चुनौती नहीं दे सकता है जिस पर जिसे प्रमाण पत्र दिया गया था । किंतु उच्‍चतम न्‍यायालय विशेष अनुमति द्वारा अपीलार्थी को दूसरे आधार पर भी चुनौती देने की अनुमति दे सकता है । ऐसी अनुमति उन्‍हीं मामलों में दी जायेगी जहाँ न्‍याय का गला घोंट दिया गया है । उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा प्रमाण पत्र देने के बाद भी उच्‍चतम न्‍यायालय अपील को स्‍वीकार कर सकता है, यदि उसे विश्‍वास हो जाय कि अपील के लाभ नहीं है । यदि उच्‍चतम न्‍यायालय प्रमाण पत्र देने से इनकार कर देता है, और उच्‍चतम न्‍यायालय को विश्‍वास हो जाता है कि मामाले में संविधान की व्‍याख्‍या का सारवान विधि प्रश्‍न अंतर्ग्रस्‍त है तो वह ऐसे निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश के विरूद्ध अनुच्‍छेद 136 के अधीन पक्षकार को उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील की विशेष अनुमति दे सकता है ।

(Word Count - 485)

Typing Dictation No :- 1 (30WPM)




आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी चीफ चंद्रबाबू नायडू दिल्ली दौरे पर हैं । उन्होंने बुधवार को आम आदमी पार्टी के चीफ और दिल्ली सीएम केजरीवाल से आंध्र भवन में मुलाकात की। दरअसल, नायडू आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए दूसरे दलों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं । अब तक वे करीब 8 पार्टियों के 9 नेताओं से मिल चुके हैं । बता दें कि आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने के मामले पर पिछले महीने टीडीपी ने एनडीए और केंद्र सरकार से खुद को अलग कर लिया था। चंद्रबाबू नायडू ने इस दौरे में 8 पार्टियों के 9 नेताओं से मुलाकात की । एनडीए से अलग होने के बाद यह इनका पहला दिल्ली दौरा है । अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, वीरप्पा मोईली, ज्योतिरादित्य सिंधिया, फारूक अब्दुल्ला, संदीप चटोउपाध्‍याय, रामगोपाल यादव, हरसिमरत कौर और संजय राउत । 

चंद्रबाबू नायडू की इन नेताओं के साथ मीटिंग के दौरान क्या बातचीत हुई, इसका खुलासा तो नहीं हुआ । लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर इन सभी विपक्षी नेताओं से समर्थन मांगा है । 

संसद में लगातार विपक्ष के हंगामे के कारण कोई कामकाज नहीं हो सका । मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिसों पर बुधवार को भी विचार नहीं किया जा सका और एक बार के स्थगन के बाद कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई। टीडीपी आंध्र के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहा है । वे करीब 6 बार केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दे चुके हैं, लेकिन हंगामें की वजह से ये कार्यवाही में शामिल नहीं हो सके। आंध्रप्रदेश का विपक्षी दल ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है ।

(Word Count - 304)

Saturday, 7 April 2018

Typing Dictation No :- 8 (45WPM)




जब मुख्‍य न्‍यायाधीश का पद रिक्‍त हो या वह अनुपस्थिति के कारण अपने पद के कर्तव्‍यों का पालन करने में असमर्थ हों तो न्‍यायालय के अन्‍य न्‍यायाधीशों में से कोई एक, जिसे राष्‍ट्रपति नियुक्‍त करें, उसके कार्य को करेगा । यदि किसी समय न्‍यायालय के किसी सत्र के चालू रखने के लिए स्‍थायी न्‍यायाधीशों का अभाव हो तो मुख्‍य न्‍यायाधीश राष्‍ट्रपति की पूर्व सम्‍मति से किसी उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश को तदर्थ न्‍यायाधीश पद पर नियुक्‍त होने के लिए उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश नियुक्‍त होने की अर्हता रखनी चाहिये । ऐसे न्‍यायाधीश के सभी अधिकार, शक्तियाँ और विशेषाधिकार प्राप्‍त होंगे ।

उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों को राष्‍ट्रपति नियुक्‍त कर सकता है । मुख्‍या न्‍यायाधिपति राष्‍ट्रपति द्वारा उच्‍चतम न्‍यायालय तथा राज्‍यों के उच्‍च न्‍यायालय के ऐसे न्‍यायाधीशों के परामर्श के पश्‍चात, जिसे राष्‍ट्रपति आवश्‍यक समझे, नियुक्‍त किया जायेगा । अन्‍य न्‍यायाधीशों की नियुक्ति राष्‍ट्रपति सर्वदा मुख्‍य न्‍यायाधीश के परामर्श से करेगा । वह उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों से भी परामर्श कर सकता है । न्‍यायाधीश की नियुक्ति करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति एक औपचारिक शक्ति है, क्‍योंकि वह इस मामले में मंत्रिमंडल की सलाह से कार्य करता है । न्‍यायाधीशों के स्‍थानान्‍तरण के मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय की 7 न्‍यायाधिपतियों की पीठ ने एकमत से निर्णय दिया है कि परामर्श शब्‍द से तात्‍पर्य पूर्ण और प्रभावी परामर्श है अर्थात संबंधित न्‍यायाधीश के समक्ष सम्‍पूर्ण तथ्‍य रखे जाने चाहिये जिसके आधार पर किसी व्‍यक्ति को न्‍यायाधीश नियुक्‍त करने के लिये वह राष्‍ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजेगा । किन्‍तु न्‍यायालय ने यह स्‍पष्‍ट रूप से कहा कि परामर्श को स्‍वीकार करने के लिए राष्‍ट्रपति बाध्‍य नहीं हैं । राष्‍ट्रपति अपना स्‍वयं निर्णय ले सकता है । न्‍यायालय ने ऐसा निर्णय देकर अपनी स्‍वतंत्रता और निष्‍पक्षता को कार्यपालिका को सौंप दिया है । इसी मामले में न्‍यायाधिपति श्री भगवती ने इस स्थिति पर चिंता व्‍यक्‍त करते हुए न्‍यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक न्‍यायिक समिति की नियुक्ति की बात पर जोर दिया था । जहाँ तक मुख्‍य न्‍यायाधिपति का प्रश्‍न है अनुच्‍छेद 124 के अंतर्गत राष्‍ट्रपति को संविधान द्वारा विहित अर्हता रखने वाले किसी भी व्‍यक्ति को मुख्‍य न्‍यायाधिपति नियुक्‍त करने की शक्ति प्राप्‍त है । किन्‍तु अन्‍य न्‍यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में राष्‍ट्रपित मुख्‍य न्‍यायाधीश से परामर्श लेने के लिए बाध्‍य है । अनुच्‍छेद 124 में इस बात का भी कोई उल्‍लेख नहीं किया गया कि उच्‍चतम न्‍यायालय के वरिष्‍ठतम न्‍यायाधीशों को ही मुख्‍य न्‍यायाधिपति नियुक्‍त किया जा सकता है । संविधान में ऐसी बाध्‍यता न होने के बावजूद प्रारंभ से ही उच्‍चतम न्‍यायालय के वरिष्‍ठतम न्‍यायाधीश को ही मुख्‍य न्‍यायाधिपति के पद पर नियुक्‍त करने की एक परम्‍परा चली आ रही थी । विधि आयोग ने सन 1956 में यह सुझाव दिया था कि मुख्‍य न्‍यायाधिपति की नियुक्ति केवल वरिष्‍ठता के आधार पर नहीं वरन न्‍यायाधीशों के गुण और उपयुक्‍तता के आधार पर की जानी चाहिये ।

(Word Count :- 448)

Thursday, 5 April 2018

Typing Dictation No :- 7 (45WPM)




अनेक संघीय शासन प्रणालियों में स्थित न्‍यायिक व्‍यवस्‍था के विपरीत भारत में एकल न्‍यायकि व्‍यवस्‍था है । इसे न्‍यायपालिका का एकीकृत रूप भी कहा जा सकता है । संविधान अधिनियम 1935 के अंतर्गत भारत में संघीय न्‍यायालय स्‍थापित किया गया था । यह पद्धति कुछ सीमित रूप से तभी स्‍थापित हो गई थी । किंतु उस समय भारत का सं‍घीय न्‍यायालय सर्वोच्‍च न्‍यायालय नहीं था क्‍योंकि इस न्‍यायालय कि विरुद्ध लंदन स्थित न्‍यायिक समिति को अपील की जा सकती थी । इन न्‍यायिक समितियों के निर्णय अंतिम होते थे । अब उच्‍चतम न्‍यायालय यथार्थ ही में सर्वोच्‍च है क्‍योंकि ऐसी कोई परिसीमित करने वाली शक्ति इसके पथ में नहीं है । उच्‍चतम न्‍यायालय भारत की न्‍यायिक व्‍यवस्‍था के शिखर पर है । इसके पास इस न्‍यायिक व्‍यवस्‍था के उचित संचालन तथा नियंत्रण करने के लिए सभी शक्तियाँ हैं । लोकतंत्रात्‍मक शासन प्रणाली के अभिन्‍न अंग के रूप में यदि एक उच्‍च न्‍यायिक स्‍तर प्राप्‍त करना चाहे तो इसके पास वे सभी शक्तियाँ हैं जिनके द्वारा यह सम्‍पूर्ण न्‍याय व्‍यवस्‍था को इस ओर संचालित कर सकता है ।

भारतीय न्‍यायिक व्‍यवस्‍था में शिखर पर उच्‍चतम न्‍यायालय है और प्रत्‍येक राज्‍य के लिए एक उच्‍च न्‍यायालय की व्‍यवस्‍था की गई है । संविधान में कार्यपालिका और व्‍यवस्‍थापित की तरह संघ और राज्‍यों के लिए दुहरी न्‍यायपालिका की व्‍यवस्‍था नहीं है प्रत्‍युत एक ही न्‍याय श्रृंखला संघ और राज्‍यों के कानूनों का प्रशासन करती है । इस एकल न्‍यायिक व्‍यवस्‍था ने भारत में न्‍यायिक क्षेत्राधिकार संबंधी एकता स्‍थापित कर दी है, साथ ही समूचे देश के लिए एकल न्‍यायिक संवर्ग की भी स्‍थापना कर दी है । यद्यपि वैधिक वर्ग से सीधे ही उच्‍चतम न्‍यायालय का न्‍यायाधीश नियुक्‍त करने के संबंध में कोई निषेध नहीं है तो भी अब तब ऐसी कोई नियुक्ति नहीं हुई है । अब तक उच्‍चतम न्‍यायालय में भी सभी नियुक्तियाँ भी अधिकतर निम्‍न न्‍यायालयों विशेषत: जिला एवं सत्र न्‍यायालयों दूसरे उच्‍च न्‍यायालय में न्‍यायाधीशों को स्‍थानान्‍तरित किया जा सकता है । उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा जारी किया गया एक लेख न केवल समूचे देश में केंद्रीय, राज्‍यीय तथा स्‍थानीय क्षेत्रों पर लागू होता है वरन् विधि के प्रत्‍येक क्षेत्र सांविधानिक, दीवानी, फौजदारी दंड आदि में लागू होता है ।

संगठन उच्‍चतम न्‍यायालय भारत का सर्वोच्‍च और अंतिम न्‍यायालय है । उच्‍चतम न्‍यायालय में एक मुख्‍य न्‍यायाधिपति और अधिक से अधिक 17 अन्‍य न्‍यायाधीश होंगे । इस प्रकार उच्‍चतम न्‍यायालय में मुख्‍य न्‍यायाधिपति को मिलाकर कुल 18 न्‍यायाधीश हैं । संविधान में वह निर्धारित नहीं किया गया है कि न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों की न्‍यूनतम संख्‍या क्‍या होगी । किंतु अनुच्‍छेद 145 के अनुसार किसी संविधानिक विषय पर निर्णय देने के लिए कम से कम पांच न्‍यायाधीश होने चाहिए । इससे स्‍पष्‍ट है कि न्‍यायालय की संविधानिक पीठ में बैठने वाले न्‍यायाधीशों की संख्‍या कम से कम 5 अवश्‍य होनी चाहिए ।

(Word Count - 439)

Tuesday, 3 April 2018

Typing Dictation No :- 6 (45WPM)




किसी बात के निर्दोष प्रकाशन और वितरण का अवमान न होना – कोई व्‍यक्ति इस आधार पर कि उसने किसी ऐसी बात को चाहे बोले गए या लिखे गए शब्‍दों के द्वारा या संकेतों द्वारा या दुष्‍य रूपणों द्वारा या अन्‍यथा, प्रकाशित किया है जो प्रकाशन के समय लम्बित किसी सिविल या दांडिक कार्यवाही के संबंध में न्‍यायालय के अनुक्रम में हस्‍तक्षेप करती है या जिसकी प्रवृत्ति उसमें हस्‍तक्षेप करने की है अथवा जो उसमें बाधा डालती है या जिसकी प्रवृत्ति उसमें बाधा डालने की है, उस दशा में न्‍यायालय अवमान का दोषी नहीं होगा जिसमें उस समय उसके पास यह विश्‍वास करने के समुचित आधार नहीं थे कि कार्यवाही लम्बित थी । इस अधिनियम में या तत्‍समय प्रवृत्ति किसी अन्‍य विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, किसी ऐसी सिविल या दांडिक कार्यवाही के संबंध में, जो प्रकाशन के समय लम्बित नहीं है, किसी ऐसी बात के प्रकाशन के बारे में, जो उपधारा 1 में वर्णित है, यह नहीं समझा जाएगा कि उससे न्‍यायालय अवमान होता है । कोई भी व्‍यक्ति इस आधार पर कि उसने ऐसा कोई प्रकाशन वितरित किया है जिसमें कोई ऐसी बात अंतर्विष्‍ट है जो उपधारा 1 में वर्णित है, उस दशा में न्‍यायालय अवमान का दोषी नहीं होगा जिसमें वितरण के समय उसके पास यह विश्‍वास करने के समुचित आधार नहीं थे कि उसमें यथापूर्वोक्‍त कोई बात अंतर्विष्‍ट थी या उसके अंतर्विष्‍ट होनी की सम्‍भावना थी । 

किसी सिविल या दांडिक कार्यवाही के मामले में तब तक लंबित बनी रही समझी जाएगी जब तक वह सुन नहीं ली जाती और अंतिम रूप से विनिश्चित नहीं कर दी जाती, अर्थात् उस मामले में जहाँ अपील या पुनरीक्षण हो सकता है, जब तक अपील या पुनरीक्षण को सुन नहीं लिया जाता और अंतिम रूप से विनिश्चित नहीं कर दिया जाता, या जहाँ अपील या पुनरीक्षण न किया जाए वहां जब तक उस परिसीमा-काल का अवसान नहीं हो जाता जो ऐसी अपील या पुनरीक्षण के लिए विहित है । 

न्‍यायिक कार्यवाही की उचित और सही रिपोर्ट अवमान न होना – धारा 7 में अंतर्विष्‍ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई भी व्‍यक्ति किसी न्‍यायिक कार्यवाही या उसके किसी प्रक्रम की उचित और सही रिपोर्ट प्रकाशित करने से न्‍यायालय अवमान का दोषी न होगा । 

न्‍यायिक कार्य की उचित आलोचना का अवमान न होना – कोई भी व्‍यक्ति किसी मामले के, जिसे सुन लिया गया है और अंतिम रूप से विनिश्चित कर दिया गया है, गुणागण पर उचित टीका-टिप्‍पणी प्रकाशित करने से न्‍यायालय अवमान का दोषी न होगा । 

चैम्‍बर में या बंद कमरे में कार्यवाहियों के संबंध में जानकारी के प्रकाशन का कुछ दशाओं के सिवाय अवमान न होना – इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्‍यक्ति चैम्‍बर में या बंद कमरे में बैठे हुए न्‍यायालय के समक्ष किसी न्‍यायिक कार्यवाही की उचित और सही रिपोर्ट प्रकाशित करने से न्‍यायालय अवमान का दोषी न होगा ।

(Word Count - 464)

Monday, 2 April 2018

Typing Dictation No :- 5 (45WPM)




राज्‍य मुकदमा नीति के उद्देश्‍यक मुकदमों में भारी विचाराधीनता को समाप्‍त करता तथा मुकदमों का शीघ्र निस्‍तारण सुनिश्चित क‍रना है । उत्‍तर प्रदेश राज्‍य में मुकदमों की संख्‍या सर्वाधिक है इसे नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के उद्देश्‍य से एक जिम्‍मेदार वादी की भांति मुकदमों की पैरवी करनी चाहिए । राज्‍य के विरुद्ध दाखिल सभी सिविल मुकदमों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अधीन या पंचायती राज अधिनियम की धारा 106 के अंतर्गत तथा अन्‍य परिनियमों के अंतर्गत एक विधिक नोटिस की आवश्‍यकता होती है । यदि नोटिस की प्राप्ति पर राज्‍य के संबंधित विभागों द्वारा सूक्ष्‍म रूप से वादी के दावों की जाँच की जाय और सही दावों को स्‍वीकार कर लिया जाये तो आगे के विवादों से बचा जा सकता है । दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अंतर्गत ‘समझौते के दलील’ के प्रावधान को समाविष्‍ट किया गया है और इसे आपराधिक मामलों के न्‍यायालयों में प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिये । सेवा संबंधी मामलों में प्रशासनिक प्राधिकारियों द्वारा छोटे छोटे मामलों के संबंध में कर्मचारी के पक्ष में अनुकम्‍पा पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये । राज्‍य के दंड न्‍यायालयों में छोटे-छोटे आपराधिक मामले भारी संख्‍या में लम्बित है, जिनके अभियोजन का समाज के लिये कोई उपयोग नहीं है । इस प्रकार के छोट-छोट आपराधिक मामलों को चिन्हित करने की आवश्‍यकता है और उन्‍हें वापस लेने का उन्‍हें छोड देने के लिए कार्यवाही आरम्‍भ करनी चाहिए । राज्‍य सरकार के विरुद्ध मामलों की पैरवी करने के लिए प्रत्‍येक विभाग के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्‍त किया जाना चाहिये । ऐसे अधिकारी को विधि के क्षेत्र में अनुभव प्राप्‍त होना चाहिये । मुकदमों के लिए विभाग के संबंधित पदाधिकारियों को उत्‍तरदायी बनाया जाना चाहिये । नोडल अधिकारियों तथा इस प्रकार के पदाधिकारियों को न्‍यायालयों की प्रक्रिया तथा कार्यविधि के संबंध में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये । इस नीति में अंतर्निहित उद्देश्‍य न्‍यायालयों में सरकारी मुकदमों को कम करना भी है ताकि न्‍यायालय के कीमती समय को अन्‍य लम्बित मामलों का निपटारा करने में लगाया जा सके, जिससे कि विचाराधीनता के औसत समय को 15 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष किये जाने के राज्‍य विधिक मिशन के लक्ष्‍य को प्राप्‍त किया जा सके । कल्‍याणकारी विधायन, समाज सुधार पर विशेष जोर देकर मुकदमों में प्राथमिकीकरण को अपनाना होगा और निर्बल वर्गों तथा वरिष्‍ट नागरिकों और अन्‍य वर्गों, जिन्‍हें सहायता की आवश्‍यकता है, को अनिवार्यत: अ‍त्‍याधिक प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिये । नोडल अधिकारियों की नियुक्ति सावधनी पूर्व की जानी चाहिये । इस नीति जिसमें एत्दपश्‍चात दिये गये निर्देश सम्मिलित है परंतु उन तक सीमित नहीं है, के समग्र तथा विनिर्दिष्‍ट कार्यान्‍वयन में नोडल अधिकारी की एक निर्णायक तथा महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है । प्रत्‍येक मंत्रालय को उपयुक्‍त नोडल अधिकारी जो विधिक पृष्‍ठभूमि तथा सुविज्ञात रखता हो, की नियुक्ति करने की जिम्‍मेदारी के प्रति सतर्क होना चाहिये । उन्‍हें इस स्थिति में होना चाहिए कि वे मुकदमों को अति सक्रियता से संभाल सकें ।

(Word Count - 455)